टी ई सिवप्रकाशम, पी एस परसुराम, बी प्रेमचन्द, एस. ए. राजकुमार तथा जी नागराजन
अक्षांश 8 उ और 16 उ के बीच भारत के निम्न पूर्वी तट को लगभग 1340 कि.मी. तटीय रेखा तथा लगभग 41,400 वर्ग कि.मी. छज्जा क्षेत्र हैं 1970-80 के दौरान मन्नार की खाड़ी में 17.5 मी. पोत द्वारा किए गए तलमज्जी संसाधन सर्वेक्षण का परिणाम दर्शाता है कि 36% द्वारा पर्चस सबसे प्रमुख संसाधन रहा, उसके बाद शार्क और स्केट रही। मत्स्यन के लिए अर्थात जनवरी से अप्रैल तथा जुलाई से अक्टूबर दो विविध ऋतु है। पोत मत्स्य निरीक्षणी द्वारा सर्वेक्षित 300 मी. गहराई तक वेड्ज बैंक के तलमज्जी संसाधन दर्शाता है कि पेर्चस एवं फाइल फिश (बालिस्टिड्स) लगभग 100 मी. गहराई तक पकड के लगभग 50-60% रही। नेमिप्टेरिड्स प्रजाति और प्रियाकेंथस प्रजाति सहित गहन समुद्र संसाधन का अधिक संकेन्द्रण 100-200 मी. गहराई में है। सभी गहराई क्षेत्र में 200 मी. तक केरन्गिड्स उपलब्ध थी तथा 100-200 उच्च पकड़ दर 175.3 मी. कि. ग्रा प्रति घंटा प्राप्त हुई। अक्षांश 12 उ. मद्रास के दक्षिण में बढ़ती गहराई के साथ 200-300 मी. गहराई में 267 कि.ग्रा. प्रति घंटा उच्च पकड़ दर की वृद्धि पाई गई। 0-50 मी गहराई में केरन्गिड्स, सिल्वर बेल्लिस मैकरेल तथा स्कड पकड में प्रमुख रही। अक्षांश 15 उ में 0-50 मी. में सिल्वर बेल्लिस (30.4%), इसके बाद पेर्चस तथा केरन्गिड्स रही। 50-100 मी. गहराई क्षेत्र में पकड़ के 56.9% रिब्बन फिश तथा सेन्ट्रोलोफस प्रजाति, प्रियाकेंथस प्रजाति प्रमुख रही। पोत मत्स्य हरिनी द्वारा अक्षांश 10˚ उ तथा 15˚ उ के बीच 200 समुद्री मील अनन्य आर्थिक क्षेत्र तक टूना लाँग लाइनिंग द्वारा कोरोमन्डल तट के महासागरीय संसाधनो का सर्वेक्षण किया इनमें सभी क्षेत्रों से येल्लो फिन प्राप्त हुई। हूकिंग दर दर्शाती है कि सर्वेक्षित क्षेत्र टूना मात्स्यिकी के आगे का विकास के लिए सुसाध्य थे।
एम ई जॉन तथा डी सुदर्शन
समुद्रवर्ती राज्यों में उडिसा तथा पश्चिम बंगाल छठी और सातवीं योजना के दौरान समुद्री मछली उत्पादन में अपेक्षाकृत उच्च स्तर की वृद्धि दर दर्ज की है। यह राज्य, देश में समु्द्री मछली उत्पादन में (क्रमशः) 2.95% तथा 2.86% योगदान करता है। इस शोध पत्र में 1969 से 1987 के दौरान उड़ीसा और पश्चिम बंगाल तट में भा. मा. स. सर्वेक्षण पोतों द्वारा संचालित मात्स्यिकी संसाधन सर्वेक्षण के परिणामों की चर्चा की हैं । क्षेत्र वार ट्रॉल सर्वेक्षण प्रयास, पकड़ संयोजन, सी पी यू ई (कि. ग्रा प्रति घंटा) तथा तलमज्जी संसाधनों के स्टॉक का अऩुमान सारणीबद्ध फार्म में दिया है। उड़ीसा तट के लिए आकलित कुल अधिक संपोषित उपज 125.6 हजार टन है, जिसमें 85.3 टन तलमज्जी तथा 40.3 हजार टन पेलाजिक संसाधन सम्मिलित है। पश्चिम बंगाल के लिए कुल संपोषित उपज 119.1 हजार टन आकलित किया है जिसमें 87.8 हजार टन तलमज्जी तथा 31.3 हजार टन पेलाजिक संसाधन सम्मिलित है। भविष्य में समुपयोजन के लिए उपलब्ध मुख्य स्टॉक इलास्मोब्रान्चस, कैट फिश, साइनिड्स, मैकरेल, सिल्वर बेल्लिस, पर्चस, पोमफ्रेट, हार्स मैकरेल तथा सारडीन है।
डी सुदर्शन, एम ई जॉन तथा वी एस सोमवंशी
इस बुलेटिन में आनुपातिक आधार पर गहन समुद्र मत्स्यन विकसित करने तथा गहन समुद्र फिश स्टॉक के प्रबन्ध में सहायता करने हेतु भारतीय अनन्य आर्थिक क्षेत्र में संभाव्य मात्स्यिकी संसाधन का संशोधित आकलन प्रदान करने का प्रयास किया गया है। महाद्वीपीय छज्जा तथा 500 मी. गहराई तक ढाल से तलमज्जी संसाधनों का अधिकतम संपोषित उपज लगभग 1.93 मिलियन टन है, जिसमें 1.78 मिलियन टन 50 मी. गहराई परिरेखा के भीतर से तथा गहरे जल से 0.65 मिलियन टन अनुमानित है। तट के तौर पर पश्चिमी तट के समीप लक्षद्वीप मिलाकर गहरे जल से 1.25 मिलियन टन संभाव्यता निर्धारित किया गया है। महाद्वीपीय छज्जा के ऊपर कुल पेलाजिक संसाधनों का संभाव्य उपज 1.74 मिलियन टन आकलित किया है। अनुमानित स्टॉक के लगभग 63% पश्चिम तट में है , 25% पूर्वी तट में 4% लक्षद्वीप तथा 8% अण्डमान एवं निकोबार जल में है। 50 मी. गहराई से दूर अपतट क्षेत्र में तटीय टूना, रिब्बन फिश, हार्स मैकरेल एवं पेलाजिक शार्क मुख्य पेलाजिक संसाधन रहा । ये, भारतीय सागर में कम समुपयोजित संसाधनों में है।
डी. सुदर्शन एवं वी. एस सोमवंशी
इस पर्ची में तलमज्जी, मध्य जल/पेलाजिक तथा महासागरीय संसाधनों के सर्वेक्षण के जरिए प्राप्त अद्यतन जानकारी का विवरण दिया है। 1980-86 के दौरान संग्रहित ऑकड़ों का प्रत्येक मत्स्यन विधि/प्रणालियों के संबंध में विश्लेषण किया गया। सर्वेक्षण प्रचालन से ऊपरी पूर्वी तट में 3 प्रकार के संसाधनों की सूचना प्रदान करती है (क) परम्परागत संसाधन (ख) ट्रॉल मत्स्यन के स्थान के बाहर परम्परागत संसाधन जो विस्तारित गहराई से शोषित किया जाएगा (ग) गहरे जल में उपलब्ध अपरम्परागत संसाधन । पर्स सीन प्रचालन का परिणाम, पेलाजिक संसाधनों की विविध प्रकार की उपलब्धियाँ दर्शाता है। पकड़ संयोजन में सायनिड्स, डीकेप्टरिड्स प्रजातियाँ, क्लूपिड्स, मैकरेल, केट फिश, करन्गिड्स पॉमफ्रेट और पेर्चस शामिल है। 200 मी. गहराई से दूर गहरे जल में मछलियों के अपरम्परागत प्रजातियाँ (सेन्ट्रोलोफस नाइजर, प्रियाकेंथस एस पी पी ) तथा अरिस्त्यिस, हेटरोकारपस वंश के गहन समुद्री झींगा तथा गहन समुद्री लॉब्स्टर (प्यूरुलस सेवेल्ली) प्राप्त हुई। संसाधन चित्र प्रकट करता है कि विविधीकृत मत्स्यन तकनीक द्वारा शोषण के लिए हमारे अनन्य आर्थिक क्षेत्र में विविध संसाधन उपलब्ध है।
पी सुलोचन एवं एम ई जॉन
भारत के समुद्रवर्ती राज्यों, में देश में कुल मछली उत्पादन के लगभग 23% योगदान द्वारा समुद्री मछली उत्पादन में केरल का स्थान सर्वप्रथम है। भा. मा. स. के पोत मत्स्य निरीक्षणी द्वारा तट के समीप किए गए गहन समुद्र तलमज्जी संसाधनों के प्रारंभिक जाँच दर्शाता है कि अक्षांश 8 तथा 9 उ के बाहरी छज्जा और ढाल में स्थायी स्टॉक प्रति यूनिट क्षेत्र आंतरिक छज्जा की तुलना में उच्च रहा। कुछ प्रमुख संसाधन घटक नेमिप्टेरिड्स (35%) तथा 200 मी. गहराई के अंदर 50-100 मी क्षेत्र से केट फिश (22%) रही। महाद्वीपीय छज्जा से पकड़ के 9.17% बड़ी पेर्च रही जिसमें मुख्यतः सेरानिड्स, लुटजेनिड्स एवं लेथ्रिनिडस रही । केरल तट से दूर छज्जा क्षेत्र से तलमज्जी पकड़ के 7.5% स्क्विड एवं कटल फिश रही । अक्षांश 8˚ उ में क्विलोन बैंक से गहन समुद्री झींगा तथा गहन समुद्री लाब्स्टर रिपोर्ट की तथा 14.72 कि.ग्रा. प्रति घंटा औसत पकड दर सूचित की । वेड्ज बैंक क्षेत्र में पकड़ में पेर्चस प्रमुख है। 23.8% का योगदान द्वारा दूसरा मुख्य ग्रुप नेमिप्टेरिड्स रही, उसके बाद रे (10.1%) सेफेलोपोड्स (6.6%) तथा केरन्गिड्स (5.7%) रही। सर्वेक्षण प्रकट करता है कि पेलाजिक झुण्ड/समूह मुख्यतः 60 मी. गहराई के अन्दर उपलब्ध थे।
डी. सुदर्शन एवं टी. ई. सिवप्रकासम
200 समुद्री मील तक महासागर के वैधानिक व्यवस्था का विस्तार तटवर्ती राष्ट्रों के सामाजिक आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हुआ है। कुल जैव मात्रा के निर्धारण के आधार पर मत्स्य संसाधनों की उपलब्धता, वर्तमान मछली उत्पादन तथा उपलब्ध जाल, संभाव्य उपज, मात्स्यिकी विकास कार्यक्रम बनाने का मूल आधार है। भा. मा. स. ने प्रयोगात्मक एवं समन्वेषणात्मक मत्स्यन के क्षेत्र में आशाजनक प्रयास किया है। पूर्व तथा वर्तमान अध्ययन के आधार पर पर्ची निर्धारित करता है कि शोषण के वर्तमान दर पर निम्न संख्या में भारतीय अनन्य आर्थिक क्षेत्र में अतिरिक्त पोतें अर्थात् लगभग 3000 यंत्रीकृत नावें 50 मी. तटवर्ती बेल्ट तक, अपतट तथा गहन समुद्र में 50 मी. दूर तक तलमज्जी एवं पेलाजिक संसाधनों के शोषण के लिए लगभग 1000 गहन समुद्र पोतें तथा महासागरीय जल में 500 पोतें जिसमें टूना लाँग लाइनर, पर्स सीनर, पोत एवं लाइनर प्रारंभ किया जा सकता है।
टी ई सिवप्रकासम तथा डी. सुदर्शन
भा. मा. स. के पोत मत्स्य सुगन्धी द्वारा 1986-87 के दौरान भारत के दक्षिण पश्चिमी तट के समीप किए गए टूना लाँग लाइन सर्वेक्षण का परिणाम इस पर्ची में प्रस्तुत किया गया है। अनन्य आर्थिक क्षेत्र में अक्षांश 5-15 उ. तथा देशांतर 69-79 पू. के बीच सर्वेक्षण किया गया। कुल मिलाकर 88,200 हू्क्स प्रचालित किए गए। सभी मछली और टूना के लिए हूकिंग दर क्रमशः 7.69% तथा 5.64% रही। उच्च अक्षांशों में उच्च हूकिंग दर पाई गई। प्रत्येक 1 अक्षांश x1 देशांतर वर्ग के लिए तथा प्रत्येक अक्षांश के लिए प्राप्त हूकिंग दरें प्रस्तुत की हैं। मौसमी परिवर्तन का विश्लेषण दर्शाता है कि फरवरी, अप्रैल तथा दिसंबर में उच्च हूकिंग दर 1.26% से 15.15% के बीच रही। सितम्बर से मई तक पकड़ दर में सामान्य वृद्धि देखी गई । पकड़ संयोजन दर्शाता है कि पकड़ के 73.36% (संख्या द्वारा) टूना रही। उसके बाद शार्क 20.92%, बिल फिश 4.98% तथा अन्य मछलियाँ 0.72% रही। टूना में येल्लो फिन टूना 98% रही। सर्वेक्षण से दक्षिण पश्चिम तट से दूर टूना एवं टूना जैसी मछलियों का वाणिज्यिक संकेंद्रण की उपलब्धि की पृष्टि करता है।
एम ई जॉन, एस. एम. पाटील तथा वी. एस. सोमवंशी
भारतीय अनन्य आर्थिक क्षेत्र में गहन समुद्र एवं महासागरीय मत्स्यन को बढ़ाने में भारत सरकार द्वारा अंगीकृत एक विकासात्मक उपाय चार्टर स्कीम के अंतर्गत विदेशी मत्स्यन पोतों को प्रचालन करने हेतु भारतीय उद्यमियों को अनुमति देना है। 1985-88 के दौरान भारत के पूर्वी तट से दूर टूना मत्स्यन में लगे ऐसे चार्टरीकृत लाँग लाइनरों का परिणाम की चर्चा की है। पोत 41-47 मी. ओ ए एल का था तथा मद्रास बन्दरगाह से प्रचालित था । समुद्र भ्रमण 3-4 माह अवधि का था। कुल मिलाकर 731 समुद्र दिन, 594 मत्स्यन दिवस तथा कुल मत्स्यन प्रयास 12.5 लाख हूक के साथ 14 समुद्री यात्राएं की गई। विविध पोतों द्वारा प्रयास प्रति मत्स्यन दिवस 1400-3000 हूक्स था। प्रचालन का मुख्य क्षेत्र अक्षांश 13-18 उ के बीच था। कुल घोषित पकड़ औसत पकड़ के 1.85 टन प्रति मत्स्यन दिवस सहित 1098.3 टन थे। मुख्य घटक में (वजन द्वारा) येल्लो फिन टूना 40.2%, मार्लिन 32.4% तथा स्वोर्ड फिश 9.6% रही। सभी मछली और येल्लो फिन टूना के लिए प्राप्त औसत पकड़ दर क्रमशः 88 कि. ग्रा. प्रति 100 हू्क्स तथा 35.4 कि. ग्रा प्रति 100 हू्क्स रही। येल्लो फिन टूना की हूकिंग दर (संख्या द्वारा) 1.07% परिकलित की है। जनवरी-अप्रैल मुख्य मत्स्यन ऋतु रहा।
डी सुदर्शन, टी ई सिवप्रकाशम, वी एस सोमवंशी, एम ई जॉन, के एन वी नायर तथा एन्टनी जॉसफ
भारत, जीवित एवं अजीवित संसाधनों से समृद्ध एक समुद्रवर्ती राज्य है। अनेक वर्षों के लिए समुद्री मछली उत्पादन 3.5% वृद्धि दर दर्ज की है तथा वर्तमान उत्पादन लगभग 1.8 मिलियन टन है। 300 मी. गहराई तक महाद्वीपीय छज्जा एवं ढाल 4,38,545 वर्ग कि.मी. (लक्षद्वीप एवं अण्डमान एवं निकोबार जल छोड़कर) परिकलित किया है। समुद्री मात्स्यिकी संसाधनों पर वर्तमान अध्ययन भा. मा. स. के पोतों द्वारा संग्रहित आँकड़े तथा तलमज्जी संसाधनों के मामले में 50 मी. गहराई से बाहर 300 मी गहराई तक वर्तमान अशोषित स्थान से संसाधनों की यात्रा निर्धारित करने का प्रयास तथा महासागरीय संसाधनों के संबंध में अनन्य आर्थिक क्षेत्र सीमा तक तलमज्जी संसाधनों के आधार पर है। यह संकेत करता है कि पश्चिमी तट के समीप स्टॉक घनत्व 40-80 मी. गहराई क्षेत्र में उच्च पाया गया, लेकिन अक्षांश 20 उ. तथा 21 उ में गहराई में वृद्धि के साथ प्रगामी वृद्धि पाई गई। कुछ क्षेत्र में उत्तर पश्चिम तथा दक्षिण पश्चिम तट से 100-150 मी. तथा 150-200 मी. गहराई क्षेत्र में उच्च औसत घनत्व प्राप्त हुआ। पूर्वी तट के समीप 100 मी. गहराई में वृद्धि के साथ संसाधन की प्रचुरता में प्रगामी वृद्धि तथा उसके बाद गिरता झुकाव पाया गया।
के एम जॉसफ, पी सुलोचनन, एम ई जॉन, वी. एस. सोमवंशी, के एन वी नायर तथा एन्टनी जॉसफ
वेड्ज बैंक के तलमज्जी संसाधन जिसका क्षेत्र लगभग 3600 वर्ग मील है, का अध्ययन अक्तूबर 1981-अप्रैल 1983 के बीच के दौरान किया गया था। तलमज्जी ट्रॉलर मत्स्य निरीक्षणी ने औसतन 20 दिनों की अवधि का क्षेत्र में 669 हॉल प्रचालित कर तथा वास्तविक नमूना लेने में 1407 घंटे लगाकर कुल 17 क्रूस प्रारंभ किए। प्रतिशत संयोजन का विश्लेषण यह प्रकट करता है कि उत्तर पूर्वी क्षेत्र से पेर्चस का उच्चतम प्रतिशत प्राप्त हुआ है, जबकि नेमिप्टेरिड्स दक्षिण पश्चिम, पश्चिम तथा पूर्वी क्षेत्रों में प्रमुख है। गहराई तौर पर विश्लेषण यह दर्शाता है कि थ्रेड फिन ब्रीम 128-183 मी. तक की बढ़ती गहाराई के साथ उच्च घनत्व का स्पष्ट प्रवृत्ति दर्शाती है। बढ़ती हुई गहराई के साथ सेफेलोपोड्स तथा केरन्गिड्स की अवनति दर्शाती है। पैदावार पैटर्न में स्पष्ट मौसमी परिवर्तन अधिकांश सभी प्रजातियों में अवलोकन किया गया। पेर्चस अगस्त में अधिकतम पैदावार के साथ तीसरी तिमाही के दौरान उच्च पकड़ दर रिकार्ड की गई। आगे शोषण के लिए बेहतर अवसर का सुझाव देते हुए अपवाद स्वरुप मार्च 1983 में दक्षिण-पूर्व क्षेत्र से 183-223 मी. गहराई में अत्यंत उच्च पकड़ दर (167.7 कि.ग्रा. प्रति घंटा ) दर्ज की गई।
के. एम. जॉसफ
गहरे जल में संचालित समन्वेषी सर्वेक्षण के दौरान वाणिज्यिक शोषण के लिए संसाधनों का महत्वपूर्ण संभावना का विवरण इस पर्ची में दिया गया है। तलमज्जी संसाधन जैसे केरन्गिड्स, पेर्चस, नेमिप्टेरिड्स, केट फिश, लिजार्ड फिश, लेस्सर सारडीन, मैकरेल, स्क्विड, कटल फिश तथा बाराकुडा को वाणिज्यिक शोषण के लिए संभावना है। अवशोषित स्टॉक जैसे बुल्स आई एवं ब्लेक रफ बाहरी महाद्वीपीय छज्जा में गहन समुद्र संसाधनों का मुख्य आधार है। हार्स मैकरेल, डीकेप्टेरिड्स, मैकरेल एवं लेस्सर सारडीन पर्स सीनिंग/मध्य जल ट्रॉलिंग के लिए संभावना प्रदान करता है। सर्वेक्षण के दौरान प्राप्त येल्लो फिन टूना के लिए हूकिंग दर हिन्द महासागर में पुनरुज्जिवित हो रही है तथा वाणिज्यिक शोषण के लिए उचित है।
पी सुलोचनन, एम ई जॉन एवं के एन वी नायर
भारतीय अनन्य आर्थिक क्षेत्र के अंतर्गत कुछ क्षेत्र टूना के लिए प्रोत्साहितजन हूकिंग दर के साथ उच्च उत्पादक पाया गया है। सर्वेक्षण अवधि के दौरान सभी टूना के लिए तथा अलग से येल्लो फिन टूना के लिए सर्वेक्षित क्षेत्र में पकड़ इनडायसेस क्रमशः 1.54% तथा 1.43% रहा। सत्तर के अंतिम दशक में इन आँकडों से जापानी (0.23%) कोरियाई (0.62%) तथा ताइवानी (0.17%) लाँग लाइनरों द्वारा दर्ज की गई हूकिंग दर काफ़ी अधिक है। वर्तमान अध्ययन दर्शाता है कि टूना की हूकिंग दर 0.36% तथा 3.06% के बीच है जो कि भारतीय जल से टूना शोषण के संभाव्यता के लिए सकारात्मक संकेत है।
डी सुदर्शन
मछली नमूने की सही पहचानीकरण के महत्व को समझते हुए इस पर्ची में विशाखापट्टणम के ट्रॉल पकड़ में प्राप्त करने के लिए ज्ञात 81 कुटुम्बों से 166 वंश के कुल 273 प्रजातियों की द्विभाजन कुंजी प्रस्तुत की है। अध्ययन से हाल ही के वर्षों में बहुत से वर्गीकृत सुधार नोट किया है, जिसके परिणामस्वरुप अनेक नामकरणों में परिवर्तन हुआ है।
टी ई शिवप्रकासम
भा.मा.स. के पोत मत्स्य निरीक्षणी द्वारा क्रमशः अक्टूबर 1981-1983 तथा अक्टूबर 1983-मार्च 1985 के दौरान वेड्ज बैंक और मन्नार की खाड़ी के तलमज्जी संसाधन सर्वेक्षण किया गया। तुलनात्मक प्रचुरता पर आँकड़े का विश्लेषण दर्शाता है कि वेड्ज बैंक के मामले में प्रति घंटा पकड़ (98.6 कि. ग्रा. प्रति घंटा) मन्नार की खाडी (133 कि. ग्रा. प्रति घंटा) की तुलना में अपेक्षाकृत कम है। वेड्ज बैंक में पेर्चस की पकड़ दर 19.8 कि. ग्रा. प्रति घंटा तथा मन्नार की खाड़ी में 24.8 कि. ग्रा. प्रति घंटा रही। वेड्ज बैंक में, गहराई स्तर से संबंधित अनुपातिक प्रचुरता प्रकट करता है कि मन्नार की खाड़ी जहाँ 20-50 मी गहराई से उच्च पकड़ दर प्राप्त होती है की तुलना में 100-200 मी. गहराई क्षेत्र से उच्च पकड़ दर प्राप्त होती है । मौसमी परिवर्तन के अवलोकन से यह प्रदर्शित होता है कि वेड्ज बैंक में उच्च पकड़ दर जनवरी और फरवरी में प्राप्त होती है, जबकि मन्नार की खाड़ी में दिसम्बर में होती है। वर्तमान अध्ययन, अध्ययन क्षेत्र में जैवमात्रा परिकलित करने का अवसर प्रदान करता है। वेड्ज बैंक में 7-77 तथा 8-77 क्षेत्र के संबंध में 20-200 मी. गहराई में कुल जैव मात्रा 38,663 टन परिकलित किया है, जबकि मन्नार की खाड़ी में वही गहराई क्षेत्र से 24.114 टन है।
के. एम जॉसफ
अनन्य आर्थिक क्षेत्र के विविध क्षेत्रों में भारतीय मात्स्यिकी सर्वेक्षण पोतों द्वारा किए गए सर्वेक्षण इस पर्ची के आधार बना है । दोनों तटों के समीप शोषित संसाधनों के अतिरिक्त नए तलमज्जी संसाधन जैसे बुल्स आई, इंडियन ड्रिफ्ट फिश, ब्लेक रफ, गहन समुद्र संसाधन समन्वेषण प्रकट करता है कि मन्नार की खाड़ी से कारवार तक पश्चिम तट के समीप गहन समुद्र लोब्स्टर पुरुलस सेवेल्ली उपलब्ध है तथा केरल-कर्नाटक तट के समीप 200-500 मी. गहराई क्षेत्र में हेट्रोकारपस प्रजाति तथा अरिस्टियस प्रजाति जैसे गहन समुद्र झींगा की उपलब्धि पाई गई । लाँग लाइन एवं पर्स सीन सर्वेक्षण का परिणाम भी प्रस्तुत किया है ।
वी. एस. सोमवंशी एवं पी. के. भार
1983 के दौरान तूतिकोरिन से प्रचालित भा. मा. स. का सर्वेक्षण पोत मत्स्य निरीक्षणी ने मन्नार की खाड़ी में पाँच प्रमुख क्षेत्र अर्थात 7-78, 8-78, 8-79, 9-78 तथा 9-79 का सर्वेक्षण किया। सर्वेक्षण का परिणाम बुलेटिन में चर्चित है। मन्नार की खाड़ी में बढ़ावा देने वाली प्रमुख ग्रूप/प्रजातियां बाराकुडा, पेर्चस, इलास्मोब्रान्चस, केरेन्गिड्स तथा पोमफ्रेट रही। अध्ययन दर्शाता है कि 0-50 मी. तथा 101-200 मी. के बीच गहराई क्षेत्र अधिक उत्पादक है। गहन समुद्र झींगा सेलिनोसेरा हेक्स्टी भी विविध मात्रा में मन्नार की खाड़ी से पकड़ी गई । 200 मी. गहराई तक होने वाली सेफेलोपोड्स में सेपियेल्लेनेरमिस, सेपिया फरेनिस तथा एस एक्यूलियटा शामिल है। इस तरह मन्नार की खाड़ी क्षेत्र में तलमज्जी मात्स्यिकी संसाधन विकास के लिए उच्च संभावनाएं प्रदान करता है।
टी वी नैनान, एस पी बसु तथा ए के भार्गव
1983-84 के दौरान सर्वेक्षण पोत मत्स्य शिकारी द्वारा पूर्वी तट के समीप 500 मी. गहराई तक अक्षांश 14˚ उ तथा 18˚ उ के बीच किए गए सर्वेक्षण का परिणाम इसमें चर्चित है। अवधि के दौरान पोत ने 617 घंटे वास्तविक मत्स्यन संचालित किया तथा 176 टन मछलियाँ अवतरित हुई । सर्वेक्षण का परिणाम सूचित करता है कि 815.98 कि.ग्रा प्रति घंटा पकड़ दर दर्ज कर 17-82 अधिक उत्पादक क्षेत्र है। गहराई वार व माह वार पकड़ का विश्लेषण प्रकट करता है कि 71-90 मी. गहराई क्षेत्र से उच्च पकड़ प्राप्त हुआ तथा फरवरी सबसे अधिक उत्पादक मौसम है। आन्ध्र तट के समीप पकड़ के 18.48% सारडीन दर्ज की।
के पी फिलिप, बी प्रेमचन्द, जी के अव्हाड तथा पी जे जॉसफ
भारतीय मात्स्यिकी सर्वेक्षण के पोतें मत्स्य शक्ति तथा मत्स्य विश्वा द्वारा 1983-94 के दौरान किए गए सर्वेक्षण का परिणाम इस पर्ची में दिया है। अक्षांश 10˚ उ से 15˚ उ तथा 70 पू. से 76 पू. के बीच क्षेत्र में 50-500 मी गहराई में 27 मी फिश ट्रॉल तथा 47 मी श्रिम्प ट्रॉल का प्रयोग कर क्रमानुसार सर्वेक्षण किया गया तथा कुल 314 टन मछलियाँ अवतरित हुई। प्रजाति संयोजन प्रकट करता है कि पकड़ में नेमिप्टेरिड्स प्रमुख रहीं। सर्वेक्षण के दौरान पकड़ दर में क्रमिक वृद्धि के साथ गहराई वृद्धि का भी अवलोकन किया है। मासिक आधार पर पकड़ दर में परिवर्तन का भी अवलोकन किया गया । अप्रैल (289.02 कि. ग्रा. प्रति घंटा) तथा मई (241.89 कि. ग्रा प्रति घंटा) माह के दौरान उच्च समस्त पकड़ दरें प्राप्त हुई।
के.के. वर्गीस, एम ई जॉन तथा वी सिवाजी
अप्रैल 1983 से अरब सागर, बंगाल की खाड़ी तथा उत्तर पश्चिम हिन्द महासागर में कोच्चिन बेस से संबंद्ध टूना लाँग लाइनर मत्स्य सुगन्धी द्वारा नमूने वितरण सहित 12 माह का सर्वेक्षण का परिणाम इस पर्ची का आधार है। कुल मिलाकर 83,000 हुक्स का प्रचालन किया गया तथा रिकार्ड की गई कुल हूकिंग दर 2.27% है। परिणाम यह दर्शाता है कि भूमध्यवर्ती समुद्र से महाद्वीपीय छज्जा जल संपन्न है। कोच्चिन के उत्तर पश्चिम में स्थित 10-74 क्षेत्र में अधिकतम हूकिंग दर 5% दर्ज की गई। पकड़ में टूना की तीन प्रजातियाँ अर्थात बिग आई टूना, येल्लो फिन टूना तथा स्किपजेक टूना सम्मिलित रही, जो कुल पकड़ के 25% रहा। बिल फिश पकड़ के 9.4% रही, धारीदार मार्लिन तथा इण्डियन सेईल फिश निरन्तर प्राप्त होने वाली मछली है । पकड़ के 64.2% पेलाजिक शार्क प्रतिनिधत्व करती है। यद्यपि भूमध्यवर्ती जल, येल्लो फिन तथा बिग आई टूना के लिए बेहतर पैदावार दर प्रदान करती है, पूर्वी तट से बिल फिश एवं स्किपजेक टूना की उच्च दरें प्राप्त होती है।