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समसामयिक पेपर

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भारतीय अनन्य आर्थिक क्षेत्र के उत्तर पश्चिम से पकड़ी गई सन फिश (कुटुम्बः मोलिडे)* (1996)

पेपर संख्या: 9

Author: वी एस सोमवंशी, एस वर्गीस, आर के गुप्ता एवं वी वी नाईक

विश्व महासागर के उष्ण कटिबंधीय एवं शीतोष्ण भाग में फैली हुई सन फिश भारतीय तट के समीप विरल प्राप्त होती है। भारतीय जल से रिपोर्ट की गई प्रजातियाँ रानजानिया ट्रन्काटा, आर टिपस, मस्तूरस इयानसियोलेटस, एम ओक्सियूरोप्टेरस और मोला मोला है। भारतीय मात्स्यिकी सर्वेक्षण का पोत येल्लो फिन भारत के उत्तर पश्चिम तट के समीप अपने लाँग लाइन प्रचालन के दौरान मई, अक्टूबर एवं नवम्बर 1992 में अक्षांश 19-22 के समीप 1152 से 1937 मी तल गहराई क्षेत्र से मोला मोला प्रजातियों की 8 नमूने एवं एम लेनसिओलेटस का एक नमूना हूक किया गया । इसकी की समीक्षा दर्शाती है कि सन फिश के जैविक पहलुएं विशेषकर पुनरुत्पादन तरीका एवं प्रजनन का स्थान का बहुत सीमित सूचना उपलब्ध है। वर्तमान जाँए के दौरान निरीक्षण किए गए सभी पाँच नमूने नर थे जिसका अपरिपक्व एवं परिपक्व जननग्रंथि था। उनके आहारी आचरण पर सूचना दर्शाती है कि वे आहार की अचयनित प्रकृति को सूचित करते हुए जेल्लि फिश से समुद्री घास-पात तक विविध प्रकार के खाद्य पदार्थ खाती है। सन फिश वाणिज्यिक प्रमुख नहीं है, क्योंकि उसके मांस पक्का, अस्वादिष्ट, फीका होने के कारण प्रिय आहार के रुप में नहीं माना जाता है। जापान में महासागरीय सनफिश एम मोला का यकृत तत्व मानव आमाशय व्रण के चिकित्सा हेतु कच्चा उपचार के रुप में प्रयोग किया गया है। सनफिश महाद्वीपीय छज्जा में बहुत विरल प्रवेश करती है। पूर्व में पकडे गए नमूने प्रासंगिक पकड या तट के समीप बहकर अवतरित हुआ होगा। सनफिश का दृश्य से अनेक पौराणिक एवं किवदंतियाँ जुडी है । हाल ही के अनुसंधान अध्ययन दर्शाता है कि ग्रीन सन फिश को समुद्र में अंधकारमय स्थिति में देखने की निपुणता है। वर्तमान अध्ययन सन फिश के संबंध में उसका सामान्य वितरण, जाति विकास, जीन्स एवं वंश की सूची, जैविक पहलुएं, आकृति ज्यामिति मापन, शरीर के खंडों या भागों संबंधित गणना, आहार एवं जनन ग्रंथि अवस्था सहित सूचना का विस्तुत विवरण प्रदान करता है।

अरब सागर एवं बंगाल की खाड़ी से ब्रामिड गहन समुद्र महासागरीय पोमफ्रेट, ताराक्टिचिथिस लॉन्गिपिन्निस (लॉव, 1843) तथा ताराक्टस रुबेस्सेन्स (जोरडन एवं एवरमेन 1887) का दो नए रिकार्ड* (1995)

पेपर संख्या: 8

Author: के एन वी नायर, वी सिवाजी एवं वी एस सोमवंशी

भारत के उत्तर पश्चिम तट के समीप महासागरीय संसाधनों के सर्वेक्षण करने के लिए टूना लाँग लाइन पोत ब्लू मार्लिन के सर्वेक्षण क्रूस के दौरान किए गए सर्वेक्षण से पोरबंदर से दूर 2375 मी गहराई में अक्षांश 2235' उ एवं देशांतर 6714' पू क्षेत्र से ताराक्टिचिथिस लाँन्गिपिन्निस का एक नमूना 22-1-1990 को हूक किया गया। दूसरी प्रजाति तारक्टिस रुबेस्सेन्स छोटे अण्डमान से दूर 2245मी गहराई में 19-12-1991 को रिकार्ड की गई। इस शोध पर्ची में, इन प्रजातियों के विवरण, समानार्थी एवं वितरण ढाँचा के आर्थिक महत्व के साथ चर्चा की गई है।

चार्टीकृत विदेशी मत्स्यन पोत प्रचालन द्वारा प्रकटित भारत के दक्षिण पश्चिम तट के समीप गहन समुद्र श्रिम्प के वितरण एवं प्रचुरता पर कुछ अवलोकन* (1994)

पेपर संख्या: 7

Author: ए के भार्गव, एम ई जॉन एवं वी राने

गहन समुद्री श्रिम्प का लक्ष्य पर ध्यान रखते हुए दक्षिण पश्चिम तट के समीप कुछ चार्टीकृत स्टर्न ट्रॉल का प्रचालन से स्टॉक का प्रचुरता एवं वितरण पर अमूल्य सूचना प्राप्त हुई है। 1990-94 की अवधि के दौरान दो इटालियन पोत एवं एक स्पेनिश पोत द्वारा किए गए मत्स्यन का परिणाम की चर्चा की है। गहन समुद्री श्रिम्प की बड़ी संख्या में प्रजातियाँ पिनाइडे कुटुम्ब एवं पांडलिडे कुटुम्ब की है, और यह दक्षिण-पश्चिम तट से दूर प्राप्त होती है। इस पर्ची में वाणिज्यिक प्रमुख प्रजातियों की सूची दी है। यह अवलोकन किया गया कि 340-430 मी गहराई क्षेत्र में आलेप्पि एवं पोन्नानी से दूर अक्षांश 9 उ एवं 10 उ में दो भिन्न मत्स्यन स्थल में मुख्य रुप से चार्टीकृत पोतें प्रचालित थे। मत्स्यन पद्धति एवं स्टॉक वितरण का वर्णन किया है। प्राप्त मीन पकड़ प्रति यूनिट 852.7 किग्रा. प्रति मत्स्यन दिवस या 50.1 किग्रा प्रति मत्स्यन घंटा रहा । माहवार पकड प्रति यूनिट प्रयत्न कोई महत्वपूर्ण परिणाम का मौसम का संकेत नही किया है, और वर्ष भर मत्स्यन व्यवहार्यता का सुझाव देता है । दूरस्थ देशों से पोतों द्वारा सफल प्रचालन, शोषण का आर्थिक सक्षमता का सूचक है। फिलहाल गहन समुद्री श्रिम्प की मन्द वृद्धि एवं उच्च मृत्यु दर को देखते हुए दीर्घकालीन शोषण के लिए सावधान मार्ग की आवश्यकता है।

अण्डमान समुद्र में स्पियर लॉब्स्टर, लिनुपारस सोमनिओसस, बेरि एवं जार्ज,1972 (कुटुम्ब पालिनूरिडे)* (1991)

पेपर संख्या: 6

Author: डी एम अली, पी पी पान्डियन, वी एस सोमवंशी, एम ई जॉन तथा के एस एन रेड्डी

स्पियर लॉब्स्टर लिनुपारस सोमनिओसस पूर्व अफ्रीकी तट से दूर प्राप्त होने के लिए ज्ञात है। इस शोध पर्ची में भारतीय जल में इस प्रजातियों की प्रथम रिकार्ड रिपोर्ट की है। भा. मा. स. का सर्वेक्षण पोत मत्स्य शिकारी अण्डमान समुद्र में अपनी प्रथम समुद्री यात्रा के दौरान 9.10.1990 को संसाधन का पता लगाया। मार्च-अप्रैल 1991 के दौरान दूसरे क्रूस में इन प्रजातियों को फिर पकड़ा। दो समुद्री यात्रा के दौरान अवलोकित वितरण क्षेत्र अक्षांश 11 40' उ से 13 10' उ तथा देशांतर 9293' पूर्व से 9308' पूर्व के बीच पूर्वी अण्डमान समुद्र में 279-360 मी गहराई क्षेत्र में है। हॉल का तौर पर प्राप्त पकड़ प्रति यूनिट प्रयत्न 0.54 से 4.83 किग्रा प्रति घंटे के आसपास रहा। जैविक अध्ययन दर्शाता है कि कुल शरीर की लम्बाई 16-42 सेमी के आसपास थी। औसतन वजन 351 ग्राम एवं अधिकतम वजन 1010 ग्राम था। नर के लिए मादा अनुपात 60.7:39.3 पाया गया । लम्बाई-वजन संबंध डब्ल्यू = 0.0449 एल 2.6877 के रुप में आकलित किया गया । लम्बाई आवृत्ति अध्ययन चार घटक के साथ बहु मॉडल वितरण पद्धति का संकेत करता है अण्डमान एवं निकोबार जल में स्टॉक का वाणिज्यिक उपयोजन की संभावनाओं की भी चर्चा शोध पर्ची में की है।

भारत के पूर्वी तट से दूर प्रकाश आकर्षण के साथ पर्स- सीनिंग प्रयोग* (1988)

पेपर संख्या: 5

Author: टी वी नैनान एवं डी सुदर्शन

पेलाजिक मछलियों का आकर्षण एवं संकेन्द्रण कृत्रिम प्रकाश द्वारा संसार के विविध भागों में कार्यान्वित किया जाता है। विविध कारक जैसे सकारात्मक फोटोटेक्सिस, अनुकूलतम प्रकाश तीव्रता के लिए प्राथमिकता, अन्वेषक प्रतिक्रिया, रक्षात्मक प्रतिक्रिया आदि मछली एकत्रीकरण में योगदान किया है। भा. मा. स. के ट्रॉलर कम पर्स-सीनिंग पोत, मत्स्य दर्शिनी पर संचालित प्रकाश से आकर्षित पर्स सीनिंग में मछली का इस व्यवहार का शोषण किया है एवं इसका परिणाम इस शोध पर्ची में प्रस्तुत किया है। यह अवलोकन किया गया है कि क्षेत्र जहाँ आविलता अधिक था एवं प्रवाह कठोर था वहाँ मछलियाँ आकर्षित थी। यह संकेत था कि बडी मछलियाँ जैसे सीर फिश, स्किपजेक टूना आदि प्रकाश द्वारा सीधा आकर्षित नही थी लेकिन प्रकाश द्वारा आकर्षित छोटी मछलियाँ जैसे सारडीन एवं एन्कोविस समूह खाने की ओर आकर्षित थी।

1985-86 के दौरान दक्षिण पश्चिम तट से दूर अरब सागर में संचालित समन्वेषी टूना लाँग लाइन सर्वेक्षण का परिणाम* (1987)

पेपर संख्या: 3

Author: टी ई सिवप्रकासम एवं एस एम पाटील

इस शोध पर्ची में पोत मत्स्य सुगन्धी द्वारा मई 1985 से मार्च 1986 की अवधि के दौरान टूना लाँग लाइन सर्वेक्षण में प्राप्त भारत के दक्षिण-पश्चिम तट से दूर टूना एवं टूना जैसी मछलियों का वितरण एवं प्रचुरता पर सूचना प्रस्तुत की है। पश्चिम तट के समीप अक्षांश 5 से 14 उ तक का ईईझेड(EEZ) क्षेत्र में सर्वेक्षण पूरा किया है। कुल हूकिंग दर 0.4% से 23.09% के बीच भिन्न रही। टूना सबसे प्रमुख घटक रही (75%) इसके बाद शार्क एवं बिल फिश रही । इसके बाद शार्क एवं बिल फिश रही। टूना की तीन प्रजातियाँ प्राप्त हुई जिसमें येलो फिन टूना 99% की सीमा तक पकड में प्रमुख रही। पूरे वर्ष के लिए 6.09% औसत के साथ टूना की हूकिंग दर 0.16% से 20.81% तक भिन्न रही। अनन्य आर्थिक क्षेत्र के अंतर्गत कर्नाटक तट से दूर उच्च पकड दर प्राप्त हुई। अध्ययन से प्रकट होता है कि टूना का उत्तरी प्रवसन निम्न अक्षांश से उच्च अक्षांश तक अक्टूबर में शुरु होता है एवं मार्च तक रहता है। भारत में टूना मात्स्यिकी का विकास की संभावना भी इस शोध पर्ची में चर्चा की है।

रेइनबो के बडे दल के स्थान पर केप कोमेरिन से दूर रन्नर इलागटिस बिपिन्नुलाटा (केरेन्गिडे)* (1986)

पेपर संख्या: 1

Author: टी ई सिवप्रकासम एवं जी नागराजन

 fishery-survey-of-india.pdf (168.43 केबी)

फरवरी 1985 में सर्वेक्षण क्रूस के दौरान भा.मा.स. का पर्स सीनिंग पोत मत्स्य वर्षिनी ने रेइनबों रन्नर, इलागटिस विपिन्नुलाटा के बडे दल का पता लगाया है। 7-77 क्षेत्र में किए गए सफल हॉल से कुल पकड़ 10.7 टन प्राप्त हुआ जिसमें इ विपिन्नुलाटा की गणना 7 टन है। इस प्रजातियों की उपस्थिति का महत्व है क्योंकि ऐसे बड़े दल का पहल रिकार्ड नहीं की गई थी। गरम तटवर्ती जल में 50-60 मी गहराई तक यह प्रजातियाँ प्राप्त होती है तथा लगभग 4 फुट लम्बाई तक वृद्धि होती है। इन प्रजातियों के लिए मुख्य मत्स्यन प्रणालियों हुक एवं लाइन, गिल जाल एवं सीन जाल है।

उडीसा एवं पश्चिम बंगाल तट से दूर मैकरेल के लिए संभाव्य ट्रॉल मात्स्यिकी* (1986)

पेपर संख्या: 2

Author: टी.ई.शिवप्रकाशम

तेल सारडीन के बाद, भारतीय मैकरेल, रास्ट्रेल्लिजर कानागुरटा (कुवियर) भारत में सब से प्रमुख मात्स्यिकी है। प्रस्तुत पर्ची में, पोत मत्स्य दर्शिनी द्वारा वर्ष 1985 के दौरान बोट्टम ट्रॉल सर्वेक्षण से प्राप्त उड़ीसा- पश्चिम बंगाल तट के समीप मैकरेल संसाधन पर कुछ रोचक अवलोकन का विश्लेषण किया है एवं प्रस्तुत किया है। इस अवधि के दौरान पोत द्वारा प्राप्त पकड़ 145 टन है। जिसमें मैकरेल का प्रतिशत 56 है। प्रजातियों के प्रचुरता में वितरण पद्धति एवं मौसमी व्यतिपात की प्रचुरता की चर्चा की है। गहराई तौर पर 101-150 मी गहराई क्षेत्र से उच्चतम पकड 201 .2 किग्रा प्रति घंटा प्राप्त हुआ इसके बाद यूनिट प्रयत्न 51-100 मी. क्षेत्र से 94.1 किगा. प्रति घंटा पकड दर प्राप्त हुई। परिणाम यह दर्शाता है कि तटवर्ती बेल्ट से अपतट/गहन समुद्र जल से मैकरेल संसाधन भरपूर है। उड़ीसा-पश्चिम बंगाल तट के समीप ट्रॉल पकड़ में मैकरेल की प्राप्ति पर्याप्त मात्रा में क्षेत्र से मैकरेल के लिए संभाव्य ट्रॉल मात्स्यिकी की अस्तित्व की पूर्व सूचना देती है।

गहन समुद्र में क्या भंड़ार है? भारतीय अनन्य आर्थिक क्षेत्र के तलमज्जी मात्स्यिकी संसाधन में समन्वेषण का परिणाम* (1986)

पेपर संख्या: 4

Author: टी ई सिवप्रकासम

गैर शीर्षक प्रलेख 1979-86 के दौरान भा मा. स. के बडे पोतों द्वारा समन्वषी सर्वेक्षण में यह व्यक्त हुआ है, कि भारतीय अनन्य आर्थिक क्षेत्र में 500 मी गहराई तक तलमज्जी मात्स्यिकी संसाधनों का संक्षिप्त अवलोकन, इस शोध पत्र में चर्चा की है। विविध गहराई क्षेत्र एवं अक्षांश में प्राप्त संसाधनों का सापेक्ष प्रचुरता के संदर्भ में तथा राज्य के तौर पर प्रत्येक गहराई क्षेत्र में प्रमुख प्रजातियों का प्रतिशत संयोजन इस सूचना में प्रस्तुत किया है। उपलब्ध संसाधनों का प्रकार, उपलब्धता क्षेत्र तथा प्रचुरता की गहराई क्षेत्र का भी पहचान किया गया। 70 मी. गहराई से दूर गहन समु्द्र में मुख्य संसाधन थ्रेड फिन ब्रीम्स, बुल्स आई, ब्लेक रफ, ड्रिफ्ट फिश, स्कड, ग्रीन आई, हार्स मैकरेल, मैकरेल, रिब्बन फिश, बाराकुडा, लिजार्ड फिश, स्क्विड एव कटल फिश, गहन समु्द्र शार्क एवं केकडा है। यह निर्णय लिया गया कि गहन समुद्री संसाधनों का आर्थिक सक्षमता का प्रयोग की जाँच करानी है। फिलहाल, बढती हुई माँग तथा तटवर्ती संसाधनों का अधिकतम उपयोग के साथ हमें भविष्य में गहन समुद्री संसाधनों से लाभ उठाना है।

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