1) बुलेटिनः कुल 30 बुलेटिन प्रकाशित किए गए
बुलेटिनें
बुलेटिन सं. 1* (1974): भारत के उत्तर पश्चिमी तट पर तलमज्जी मात्स्यिकी संसाधन
के. एम. जोसेफ
इस बुलेटिन में गहन समुद्र मत्स्यन स्टेशन, मुम्बई द्वारा गुजरात महाराष्ट्र तट के समीप उसके प्रारंभ से 1973 तक संचालित समन्वेषी बोट्टम ट्रॉलिंग का परिणाम की चर्चा की गई है । अक्षांश 15˚ उ और 23˚उ तथा 67 पू. तथा 74 पू. के बीच क्षेत्र में बड़ी संख्या में विविध प्रकार एवं आकार के ट्रॉलरों को समन्वेषी ट्रॉलिंग के लिए नियुक्त किए थे । पकड़ संयोजन यह दर्शाता है कि अध्ययन किए गए क्षेत्र में विविध महत्वपूर्ण वाणिज्यिक प्रजातियां है । समन्वेषी मत्स्यन का एक मुख्य उद्देश्य संसाधनों का तुलनात्मक प्रचुरता निर्धारित करना था । गहराई द्वारा सभी क्षेत्र के लिए प्रचुरता सूची बनाई गई है । वर्ष में एक बार पोतों के नौ किस्म द्वारा छह क्षेत्रों में पकड़ के मौसमी परिवर्तन ग्राफीय फार्म में दिया गया है । महाद्वीपीय छज्जा क्षेत्र में अध्ययनार्थ उपलब्ध तलमज्जी मछली के स्थायी स्टॉक को निर्धारित करने में प्रयास किए गए । यह अनुमान है कि महाराष्ट्र तट से दूर 23-50 मी. गहराई क्षेत्र से तलमज्जी संसाधनों का संभाव्य मात्स्यिकी लगभग 1,20,000 टन है, जबकि गुजरात में यह कम है । महाराष्ट्र तट में मात्र इलास्मोब्रान्चस तथा धोमा, पकड़ का लगभग 50% रहा । निःसंदेह, यह अध्ययन दर्शाता है कि बडी संख्या में मध्यम एवं बड़े आकार के ट्रॉलरों के प्रचालन से तलमज्जी मात्स्यिकी संसाधन क्षेत्र को संपोषित किया जा सकता है ।
बुलेटिन सं. 2* (1975): वार्षिक रिपोर्ट 1974-75
के. एम. जोसेफ
22 पोतों के प्रचालन द्वारा 30-100 मी. गहराई के बीच 30 फैदम के अन्दर लगभग 22,000 वर्ग कि.मी. न खोजे गए क्षेत्र तथा 2000 वर्ग कि.मी का सर्वेक्षण किया गया । 1974-75 के लिए सर्वेक्षण कार्यक्रम का एक महत्वपूर्ण विशेषता समन्वेषी एवं परीक्षणात्मक मत्स्यन के बीच बनाए गए सीमांकन था । परीक्षणात्मक मत्स्यन के अंतर्गत आठ 17.5 मी. देशी निर्मित पोतों द्वारा कान्डला, मुम्बई, गोवा, मैंगलूर, तूतिकोरिन तथा मद्रास से तलमज्जी ट्रॉलिंग संचालित करते थे, पोर्ट ब्लेयर से टूना लॉग लाइनिंग एवं ट्रॉलिंग संचालित करते थे, तथा गोवा एवं पोर्ट ब्लेयर से कलवा तथा हैंड लाइन मत्स्यन प्रारंभ किए थे । विशाखापट्टणम तथा कोचिन से विशेष श्रिम्प सर्वेक्षण कार्यक्रम किए गए । इन सर्वेक्षण कार्यक्रमों के परिणामों की चर्चा हुई । अध्ययन काल के दौरान, उच्च पकड़ दर उत्तर पूर्वी क्षेत्र से अवलोकन किया गया । गहराई तौर पर अध्ययन से यह पता चला कि 100 मी. से बाहर गहराई में प्रजाति प्रचुरता उच्च थी । पकड़ में उच्च प्रतिशत कै़ट फिश, धोमा, ईल तथा करकरा रही ।
बुलेटिन सं. 3* (1976): भारत के दक्षिण पश्चिमी तट की तलमज्जी मात्स्यिकी संसाधन
के. एम. जॉसफ, एन राधाकृष्णन तथा के पी फिलिप
1957-1974 की अवधि के दौरान दक्षिण पश्चिमी तट से दूर तलमज्जी संसाधनों के अध्ययन के लिए इ एफ पी जलयानों के द्वारा किए गए प्रयासों को प्रस्तुत किया गया है । प्रचालन का क्षेत्र अक्षांश 7˚ उ तथा 15˚ उ. तथा देशांतर 73 पू. तथा 78 पू. के बीच रहा तथा कुल अध्ययन क्षेत्र 80,000 वर्ग कि. मी. था । सर्वेक्षण में विविध आकारों, अश्व शक्ति, टन आदि के अठारह पोतों को नियुक्त किया गए । प्रचालन क्षेत्र में तीव्र नमूने का वितरण, सामान्यतः तलमज्जी संसाधनों का विस्तृत रुप में विश्लेषित किया तथा प्रस्तुत किया गया । वास्तविक मत्स्यन के कुल 29,400 घंटों में, लगभग 65% 20-39 मी. के अंदर के क्षेत्र में व्यतीत किया गया 10-19 मी. तथा 40-59 मी. में नमूने की तीव्रता कुल मत्स्यन प्रयास के क्रमशः 23% तथा 10% के क्रम में था । गहराई एवं क्षेत्र द्वारा पकड़ संयोजन के संबंध में किए गए विश्लेषण से कुछ रोचक अवलोकन प्रकट हुआ है । अध्ययन किए गए विविध क्षेत्रों से 20 मी. के नीचे के क्षेत्र से प्रचुर मात्रा में झींगा की उपस्थिति 40-59 मी. में इलास्मोब्रान्चसः 20-39 मी. में किलिमीन तथा लेक्टारियस, 40-79 मी. में केट फिश की उपस्थिति देखी गई, इस तरह भविष्य में शोषण के लिए संसाधन का अनुमान प्राप्त हुआ ।
बुलेटिन सं. 4*(1976): 1975-76 के दौरान संचालित समन्वेषी मत्स्यन परिणाम
के. एम. जॉसेफ
बुलेटिन में 1975-76 के दौरान परियोजना द्वारा संचालित समन्वेषी सर्वेक्षण का परिणाम दिया है । अध्ययन के इस अवधि के दौरान परियोजना ने 22 स्टील ट्रॉलरों का प्रचालन किया गया जिसमें से 19 ट्रॉलर 17.5मी. के देशी निर्मित ट्रॉलर थे । ये पोतें, परियोजना के ग्यारह बेस अर्थात कान्डला, मुम्बई, गोवा, मैंगलूर, कोचिन, तूतिकोरिन, मद्रास, विशाखपट्टणम, पाराद्वीप, कोलकत्ता तथा पोर्ट ब्लेयर से प्रचालित कियें गये थे । सर्वेक्षण कार्यक्रम में समन्वेषी एवं प्रयोगात्मक बॉट्टम ट्रॉलिंग द्वारा तलमज्जी मात्स्यिकी संसाधन तथा कलवा हैंड लाइन मत्स्यन तथा पर्स सीनिंग, मध्य जल ट्रॉलिंग, टूना लाँग लाइनिंग तथा ट्रॉलिंग नियुक्त कर पेलाजिक संसाधन सर्वेक्षण शामिल है । इसके अतिरिक्त विशेष श्रिम्प सर्वेक्षण कार्यक्रम भी गोवा, मँगलूर, कोचिन, विशाखापट्टणम एवं पाराद्वीप से संचालित किया गया । सर्वेक्षण में प्रयुक्त मत्स्यन प्रणाली एवं गियर तथा सामान्यतः संसाधनों का सापेक्ष प्रचुरता तथा क्षेत्र, गहराई तथा समय के विशेष संदर्भ के साथ वाणिज्यिक प्रमुख प्रजातियों का विवरण की भी चर्चा की गई ।
बुलेटिन सं. 5* (1976): भारत के पूर्वी तट के समीप तलमज्जी मात्स्यिकी संसाधन सर्वेक्षण का परिणाम 1959-74
के. एम. जॉसफ, एन राधाकृष्णन, एन्टनी जॉसफ तथा के पी फिलिप
भारत के पूर्वी तट में अक्षाश 8˚ उ और 22˚ उ तथा देशांतर 78˚ पू. तथा 90˚ पू. के बीच 1959-74 की अवधि के दौरान समन्वेषी मात्स्यिकी परियोजना द्वारा संचालित मात्स्यिकी संसाधन परिणाम बुलेटिन में प्रस्तुत है। विविध अश्व शक्ति युक्त चौबीस पोतें सर्वेक्षण के लिए नियुक्त किए गए । निम्न एवं ऊपरी पूर्वी तट के समीप तलमज्जी मात्स्यिकी संसाधनों का सापेक्ष प्रचुरता मद्रास से दूर सर्वेक्षित लगभग सभी क्षेत्रों में झींगा का पकड़ दर नगण्य पाई गई तथा निम्न पूर्वी तट के दक्षिण भाग में सापेक्ष उच्च प्रचुरता के साथ पर्चस का पकड़ दर 2 से 49 कि.ग्रा. प्रति घंटा के आसपास रहा । निम्न एवं उच्च पूर्वी तट के समीप विविध प्रजातियों के चरम प्राप्ति सूचित करते हुए प्रमुख मछलियों की पकड़ दर में मासिक परिवर्तन प्रस्तुत किया है । वर्तमान अध्ययन पूर्व विश्वास की तुलना में यह दर्शाता है कि ऊपरी पूर्वी तट निम्न पूर्वी तट से अधिक उत्पादक है तथा शेल्फ क्षेत्र से कुल संभावित उपज पूर्व कर्मियों द्वारा अनुमानित से भी अधिक होने की संभावना है।
बुलेटिन सं. 6*(1977): 1976-77 के दौरान संचालित समन्वेषी मत्स्यन का परिणाम
एम. स्वामीनाथ
इस बुलेटिन में 1976-77 के दौरान परियोजना के पोतों के विविध वर्गों द्वारा अक्षांश 7 0˚ उ-20˚ 0उ. तथा देशांतर 76˚ पू.-88˚ पू. के बीच क्षेत्र में संचालित समन्वेषी मात्स्यिकी सर्वेक्षण का परिणाम उल्लेख किया गया है । अवधि के दौरान लगभग 46,000 वर्ग कि. मी. क्षेत्र का सर्वेक्षण किया गया तथा लगभग 1806 टन श्रिम्प व मछली अवतरित हुई । विविध क्षेत्रों से प्राप्त ट्रॉल पकड़ में व्यवसायिक प्रमुख प्रजातियों का प्रतिशत संयोजन का अध्ययन किया गया । पश्चिम तट के सभी बेस कार्यालयों में से मैंगलूर में रानी फिश का प्रतिशत उच्च रहा । तूतिकोरिन क्षेत्र से पकड़ के लगभग 2/3 भाग पर्चस एवं इलास्मोब्रान्चस रही जबकि मद्रास से प्राप्त मुख्य ग्रुप लियोग्नथिड्स, इलास्मोब्रान्चस, पर्चस एवं पोमफ्रेट रही । संसाधन के सापेक्ष प्रचुरता एवं प्रमुख प्रजातियों की पकड़ दर के मासिक परिवर्तन की भी चर्चा की गई । उत्तर पश्चिम तट एवं निम्न पूर्वी तट अन्य क्षेत्रों से अधिक पैदावार योग्य बनाया गया । पोर्ट ब्लेयर से टूना लाँग लाइनिंग से औसत हुकिंग दर 3.8% हुई जो कि वाणिज्यिक प्रचालन के लिए योग्य है ।
बुलेटिन सं. 7* (1978): अण्डमान द्वीपों के चारों ओर समन्वेषी सर्वेक्षण परिणाम
डी. सुदर्शन
इस बुलेटिन के बनाने का आधार अण्डमान द्वीपो के चारों ओर विविध मत्स्यन प्रणालियों का प्रयोग कर तीन पोतों द्वारा संचालित सर्वेक्षण का परिणाम है । इस अवधि के दौरान, कुल 2420.3 घंटे मत्स्यन प्रयास व्यतित किए गए । अपनाए गए पाँच मत्स्यन प्रणालियों में से, लगभग 50% प्रयास बोट्टम ट्रॉलिंग द्वारा हुआ है, जो कि अण्डमान एवं निकोबार जल में इस प्रणाली के लिए संभावना सूचित करता है । लियोग्नाथिड्स, साइनिड्स, उपिनोइड्स, इलास्मोब्रोन्च, केट फिश तथा पेर्चस पकड़ के मुख्य घटक रहे । पकड़ का मौसमी प्रचुरता अक्टूबर से मार्च तक की अवधि, अन्य अवधि की तुलना में सामान्यतः अधिक उत्पादन दर्शाता है । अपनाए गए मत्स्यन प्रणालियों में कलवा के लिए लाँग लाइनिंग, ट्रॉलिंग तथा हैंड लाइन से बेहतर परिणाम उत्पन्न हुआ । सुग्राहिता क्षेत्र प्रणाली के आधार पर तलमज्जी संसाधनों का स्टॉक निर्धारण बनाया है । स्थायी पैदावार लगभग 2.78 टन/वर्ग मी. परिकलित किया है । तलमज्जी संसाधनों के कुल स्थायी पैदावार 44,576 मेट्रिक टन आकलित किया है, जो कि पूर्व लेखकों द्वारा गणित आंकड़े का लगभग 10 गुना के बराबर है ।
बुलेटिन सं. 8* (1978): 1977-78 के दौरान संचालित समन्वेषी मत्स्यन का परिणाम
एम. स्वामीनाथ
इस बुलेटिन में वर्ष 1977-78 के दौरान परियोजना द्वारा संचालित मात्स्यिकी संसाधन सर्वेक्षण के परिणाम की चर्चा हुई है । बारह बेस कार्यालयों से बाईस पोतों ने तलमज्जी मात्स्यिकी संसाधन का सर्वेक्षण किया । सर्वेक्षण प्रक्रिया के दौरान पोत से 1,134 टन मछलियाँ एवं झींगा अवतरित हुई । ट्रॉल पकड़ का संयोजन प्रत्येक क्षेत्र में सापेक्ष प्रचुरता तथा प्रमुख ग्रूप के बेथिमेट्रिकल तथा मौसमी उतार चढ़ाव प्रत्येक क्षेत्र के लिए विश्लेषित किया गया । मई माह में पश्चिमी तट में कान्डला क्षेत्र से पकड़ के प्रमुख घटक के रुप में इलास्मोब्रान्चस सहित 269 कि. ग्रा. प्रति घंटा उपज पाया गया । पूर्वी तट से प्राप्त ट्रॉल पकड़ के मुख्य घटक पेर्चस, रे एवं साइनिड्स रही, जो कि जुलाई-अगस्त माह में उपज का बेहतर पकड़ पाया गया । अन्य गहराई की तुलना में 20-30- मी. गहराई क्षेत्र अधिक उत्पादक रहा । लाँग लाइनिंग एवं ट्रॉलिंग से भी प्रोत्साहजनक परिणाम प्राप्त हुआ ।
बुलेटिन सं. 9* (1979): 1978-79 के दौरान संचालित समन्वेषी मत्स्यन का परिणाम
एम. स्वामीनाथ
1978-79 के दौरान विविध विनिर्देशन के 23 जलयानों के साथ बोट्टम ट्रॉलिंग तथा पेलाजिक और अन्य विविधीकृत मत्स्यन प्रणालियाँ जैसे पर्स सीनिंग, टूना लाँग लाइनिंग द्वारा लगभग 39,000 वर्ग कि. मी. क्षेत्र का सर्वेक्षण किया गया तथा चयनित बेस कार्यालयों से 3,000 वर्ग कि. मी. क्षेत्र ट्रॉलिंग किया गया । इन सर्वेक्षणों का परिणाम बुलेटिन में विचार विमर्श किया है । परिणाम यह दर्शाता है कि पश्चिमी तट में इलास्मोब्रान्चस प्रमुख ग्रूप रही जबकि पूर्वी तट में मुख्य पकड़ में केट फिश शामिल रही । विविध भौगोलिक भाग में प्रमुख ग्रुप रही जबकि पूर्वी तट में मुख्य पकड़ में केट फिश शामिल रही । विविध भौगोलिक भाग में प्रमुख प्रकार का सापेक्ष प्रचुरता तथा गहराई क्षेत्र तथा पकड़ के गुण तथा मात्रा के संबंध में मौसमी परिवर्तन की भी चर्चा की गई । मुम्बई क्षेत्र के समीप उत्पादक क्षेत्र 30-39 मी. गहराई के बीच है और उच्च पैदावार माह दिसंबर एवं फरवरी है । पूर्वी तट में विशाखापट्टणम क्षेत्र से पर्याप्त पकड़ दर्ज किया गया तथा 60-69 मी. उत्पादक क्षेत्र के रुप में पहचान किया है । जनवरी में उच्च पकड़ दर रिकार्ड की गई । पर्स सीनिंग, लाँग लाइनिंग, ट्रॉलिंग एवं मध्य जल ट्रॉलिंग का भी प्रयास किया गया तथा इसका परिणाम आशाजनक रहा है ।
बुलेटिन सं. 10*(1980): 17.5 मी. ट्रॉलरों द्वारा निर्धारित भारतीय जल में तलमज्जी मात्स्यिकी संसाधनों का तुलनात्मक अध्ययन
के. एम. जॉसफ
इस बुलेटिन में 1970-71 से 1979-80 तक की अवधि के दौरान 11 बेस कार्यालयों से प्रचालित 17.5 मी. ट्रॉलरों द्वारा भारतीय तट के समीप तलमज्जी मात्स्यिकी संसाधनों का संग्रहित आंकडों से व्यापक वर्णन प्रस्तुत किया है । पकड़ प्रति यूनिट प्रयत्न पर प्राप्त आंकड़ा, मौसमी एवं पकड़ संयोजन चार्ट, चित्र तथा सारणी के फार्म में आसानी से देखने लायक बनाने हेतु प्रस्तुत किया है । पश्चिमी तट में 80 मी. गहराई तक प्रमुख ग्रूप के रुप में केट फिश के साथ उच्च पकड़ दर प्राप्त हुई जबकि पूर्वी तट में 20-60 मी. गहाराई क्षेत्र में पेर्चस एवं लियोग्नाथिड्स की उच्च पकड़ दर दर्शाई । सुग्राहिता क्षेत्र (स्वेप्ट क्षेत्र) प्रणाली के आधार पर 75 मी. गहराई के अंदर तलमज्जी मात्स्यिकी संसाधनों का संभाव्य उपज 16,79, 000 टन अनुमानित किया है ।
बुलेटिन सं. 11* (1981): भारत के उत्तर पश्चिमी तट के समीप हाल ही में अवरोधित कुछ चोरी किए हुए पोतों द्वारा मछली पकड़ का अवलोकन
के. एम. जॉसेफ
इस बुलेटिन में भारत के उत्तर पश्चिमी तट में चोरी कर जब्त किया हुआ 8 ताइवानीज ट्रॉलरों तथा परियोजना पोत, मत्स्य निरीक्षणी एवं उसी क्षेत्र में प्रचालित अन्य वाणिज्यिक पोतों के पकड़ में प्रजाति संयोजन का विवरण दिया है जिससे यह प्रकट होता है कि चोरी पोतों ने मुख्यतः सौराष्ट्र क्षेत्र के समीप मत्स्यन किया है । विविध पोतों के पकड़ में कुछ प्रजातियां जैसे स्क्विड तथा कटल फिश का प्रतिशत संयोजन में परिवर्तन, चोरी पोतों के प्रचालन विधि पर निर्भर है तथा यह अनुमानित करता है कि इन विदेशी पोतें दिन में गहन दूरस्थ जल में तथा रात को उथले जल में मत्स्यन करते हैं । ताइवानीज स्टेर्न ट्रॉलरों के पकड़ में कटल फिश एवं स्क्विड (28%) का उच्च विस्तार परियोजना के प्रारम्भिक उपलब्धियों को सहारा प्रदान करता है जहाँ उत्तर पश्चिमी तट के समीप सेफोलोपोड्स के संभाव्य संसाधन विद्यमान है ।
बुलेटिन सं. 12*(1987): वेड्ज बैंक के तलमज्जी मात्स्यिकी संसाधन
के एम जॉसफ, पी सुलोचनन, एम ई जॉन, वी. एस. सोमवंशी, के एन वी नायर तथा एन्टनी जॉसफ
वेड्ज बैंक के तलमज्जी संसाधन जिसका क्षेत्र लगभग 3600 वर्ग मील है, का अध्ययन अक्तूबर 1981-अप्रैल 1983 के बीच के दौरान किया गया था । तलमज्जी ट्रॉलर मत्स्य निरीक्षणी ने औसतन 20 दिनों की अवधि का क्षेत्र में 669 हॉल प्रचालित कर तथा वास्तविक नमूना लेने में 1407 घंटे लगाकर कुल 17 क्रूस प्रारंभ किए । प्रतिशत संयोजन का विश्लेषण यह प्रकट करता है कि उत्तर पूर्वी क्षेत्र से पेर्चस का उच्चतम प्रतिशत प्राप्त हुआ है, जबकि नेमिप्टेरिड्स दक्षिण पश्चिम, पश्चिम तथा पूर्वी क्षेत्रों में प्रमुख है । गहराई तौर पर विश्लेषण यह दर्शाता है कि थ्रेड फिन ब्रीम 128-183 मी. तक की बढ़ती गहाराई के साथ उच्च घनत्व का स्पष्ट प्रवृत्ति दर्शाती है । बढ़ती हुई गहराई के साथ सेफेलोपोड्स तथा केरन्गिड्स की अवनति दर्शाती है । पैदावार पैटर्न में स्पष्ट मौसमी परिवर्तन अधिकांश सभी प्रजातियों में अवलोकन किया गया । पेर्चस अगस्त में अधिकतम पैदावार के साथ तीसरी तिमाही के दौरान उच्च पकड़ दर रिकार्ड की गई । आगे शोषण के लिए बेहतर अवसर का सुझाव देते हुए अपवाद स्वरुप मार्च 1983 में दक्षिण-पूर्व क्षेत्र से 183-223 मी. गहराई में अत्यंत उच्च पकड़ दर (167.7 कि.ग्रा. प्रति घंटा ) दर्ज की गई ।
पर्ची-1. 1983-84 के दौरान मात्स्यिकी संसाधन सर्वेक्षण का परिणाम पर मुख्य अवलोकन
के. एम जॉसफ
अनन्य आर्थिक क्षेत्र के विविध क्षेत्रों में भारतीय मात्स्यिकी सर्वेक्षण पोतों द्वारा किए गए सर्वेक्षण इस पर्ची के आधार बना है । दोनों तटों के समीप शोषित संसाधनों के अतिरिक्त नए तलमज्जी संसाधन जैसे बुल्स आई, इंडियन ड्रिफ्ट फिश, ब्लेक रफ, गहन समुद्र संसाधन समन्वेषण प्रकट करता है कि मन्नार की खाड़ी से कारवार तक पश्चिम तट के समीप गहन समुद्र लोब्स्टर पुरुलस सेवेल्ली उपलब्ध है तथा केरल-कर्नाटक तट के समीप 200-500 मी. गहराई क्षेत्र में हेट्रोकारपस प्रजाति तथा अरिस्टियस प्रजाति जैसे गहन समुद्र झींगा की उपलब्धि पाई गई । लाँग लाइन एवं पर्स सीन सर्वेक्षण का परिणाम भी प्रस्तुत किया है ।
पर्ची-2. मन्नार की खाड़ी के तलमज्जी मात्स्यिकी संसाधन सर्वेक्षण पर नोट
वी. एस. सोमवंशी एवं पी. के. भार
1983 के दौरान तूतिकोरिन से प्रचालित भा. मा. स. का सर्वेक्षण पोत मत्स्य निरीक्षणी ने मन्नार की खाड़ी में पाँच प्रमुख क्षेत्र अर्थात 7-78, 8-78, 8-79, 9-78 तथा 9-79 का सर्वेक्षण किया । सर्वेक्षण का परिणाम बुलेटिन में चर्चित है । मन्नार की खाड़ी में बढ़ावा देने वाली प्रमुख ग्रूप/प्रजातियां बाराकुडा, पेर्चस, इलास्मोब्रान्चस, केरेन्गिड्स तथा पोमफ्रेट रही । अध्ययन दर्शाता है कि 0-50 मी. तथा 101-200 मी. के बीच गहराई क्षेत्र अधिक उत्पादक है । गहन समुद्र झींगा सेलिनोसेरा हेक्स्टी भी विविध मात्रा में मन्नार की खाड़ी से पकड़ी गई । 200 मी. गहराई तक होने वाली सेफेलोपोड्स में सेपियेल्लेनेरमिस, सेपिया फरेनिस तथा एस एक्यूलियटा शामिल है । इस तरह मन्नार की खाड़ी क्षेत्र में तलमज्जी मात्स्यिकी संसाधन विकास के लिए उच्च संभावनाएं प्रदान करता है ।
पर्ची-3. आन्ध्र प्रदेश तट के समीप तलमज्जी मात्स्यिकी संसाधनों पर अवलोकन
टी वी नैनान, एस पी बसु तथा ए के भार्गव
1983-84 के दौरान सर्वेक्षण पोत मत्स्य शिकारी द्वारा पूर्वी तट के समीप 500 मी. गहराई तक अक्षांश 14˚ उ तथा 18˚ उ के बीच किए गए सर्वेक्षण का परिणाम इसमें चर्चित है । अवधि के दौरान पोत ने 617 घंटे वास्तविक मत्स्यन संचालित किया तथा 176 टन मछलियाँ अवतरित हुई । सर्वेक्षण का परिणाम सूचित करता है कि 815.98 कि.ग्रा प्रति घंटा पकड़ दर दर्ज कर 17-82 अधिक उत्पादक क्षेत्र है । गहराई वार व माह वार पकड़ का विश्लेषण प्रकट करता है कि 71-90 मी. गहराई क्षेत्र से उच्च पकड़ प्राप्त हुआ तथा फरवरी सबसे अधिक उत्पादक मौसम है । आन्ध्र तट के समीप पकड़ के 18.48% सारडीन दर्ज की ।
पर्ची-4. कर्नाटक- उत्तर केरल तट के गहन समुद्र तलमज्जी संसाधनों पर एक टिप्पणी
के पी फिलिप, बी प्रेमचन्द, जी के अव्हाड तथा पी जे जॉसफ
भारतीय मात्स्यिकी सर्वेक्षण के पोतें मत्स्य शक्ति तथा मत्स्य विश्वा द्वारा 1983-94 के दौरान किए गए सर्वेक्षण का परिणाम इस पर्ची में दिया है । अक्षांश 10˚ उ से 15˚ उ तथा 70 पू. से 76 पू. के बीच क्षेत्र में 50-500 मी गहराई में 27 मी फिश ट्रॉल तथा 47 मी श्रिम्प ट्रॉल का प्रयोग कर क्रमानुसार सर्वेक्षण किया गया तथा कुल 314 टन मछलियाँ अवतरित हुई । प्रजाति संयोजन प्रकट करता है कि पकड़ में नेमिप्टेरिड्स प्रमुख रहीं । सर्वेक्षण के दौरान पकड़ दर में क्रमिक वृद्धि के साथ गहराई वृद्धि का भी अवलोकन किया है । मासिक आधार पर पकड़ दर में परिवर्तन का भी अवलोकन किया गया । अप्रैल (289.02 कि. ग्रा. प्रति घंटा) तथा मई (241.89 कि. ग्रा प्रति घंटा) माह के दौरान उच्च समस्त पकड़ दरें प्राप्त हुई ।
पर्ची-5. हिन्द महासागर में टूना संसाधनों पर कुछ अवलोकन
के.के. वर्गीस, एम ई जॉन तथा वी सिवाजी
अप्रैल 1983 से अरब सागर, बंगाल की खाड़ी तथा उत्तर पश्चिम हिन्द महासागर में कोच्चिन बेस से संबंद्ध टूना लाँग लाइनर मत्स्य सुगन्धी द्वारा नमूने वितरण सहित 12 माह का सर्वेक्षण का परिणाम इस पर्ची का आधार है । कुल मिलाकर 83,000 हुक्स का प्रचालन किया गया तथा रिकार्ड की गई कुल हूकिंग दर 2.27% है । परिणाम यह दर्शाता है कि भूमध्यवर्ती समुद्र से महाद्वीपीय छज्जा जल संपन्न है । कोच्चिन के उत्तर पश्चिम में स्थित 10-74 क्षेत्र में अधिकतम हूकिंग दर 5% दर्ज की गई । पकड़ में टूना की तीन प्रजातियाँ अर्थात बिग आई टूना, येल्लो फिन टूना तथा स्किपजेक टूना सम्मिलित रही, जो कुल पकड़ के 25% रहा । बिल फिश पकड़ के 9.4% रही, धारीदार मार्लिन तथा इण्डियन सेईल फिश निरन्तर प्राप्त होने वाली मछली है । पकड़ के 64.2% पेलाजिक शार्क प्रतिनिधत्व करती है । यद्यपि भूमध्यवर्ती जल, येल्लो फिन तथा बिग आई टूना के लिए बेहतर पैदावार दर प्रदान करती है, पूर्वी तट से बिल फिश एवं स्किपजेक टूना की उच्च दरें प्राप्त होती है ।
पर्ची-1. भारतीय अनन्य आर्थिक क्षेत्र (ई ई जेड) से सम्भावित मात्स्यिकी संसाधनों का कुछ अवलोकन
के. एम. जॉसफ
गहरे जल में संचालित समन्वेषी सर्वेक्षण के दौरान वाणिज्यिक शोषण के लिए संसाधनों का महत्वपूर्ण संभावना का विवरण इस पर्ची में दिया गया है । तलमज्जी संसाधन जैसे केरन्गिड्स, पेर्चस, नेमिप्टेरिड्स, केट फिश, लिजार्ड फिश, लेस्सर सारडीन, मैकरेल, स्क्विड, कटल फिश तथा बाराकुडा को वाणिज्यिक शोषण के लिए संभावना है । अवशोषित स्टॉक जैसे बुल्स आई एवं ब्लेक रफ बाहरी महाद्वीपीय छज्जा में गहन समुद्र संसाधनों का मुख्य आधार है । हार्स मैकरेल, डीकेप्टेरिड्स, मैकरेल एवं लेस्सर सारडीन पर्स सीनिंग/मध्य जल ट्रॉलिंग के लिए संभावना प्रदान करता है । सर्वेक्षण के दौरान प्राप्त येल्लो फिन टूना के लिए हूकिंग दर हिन्द महासागर में पुनरुज्जिवित हो रही है तथा वाणिज्यिक शोषण के लिए उचित है ।
पर्ची-2 येल्लो फिन टूना के वितरण पैटर्न के विशेष संदर्भ के साथ अरब सागर के टूना संसाधनों पर प्रारंभिक अवलोकन
पी सुलोचनन, एम ई जॉन एवं के एन वी नायर
भारतीय अनन्य आर्थिक क्षेत्र के अंतर्गत कुछ क्षेत्र टूना के लिए प्रोत्साहितजन हूकिंग दर के साथ उच्च उत्पादक पाया गया है । सर्वेक्षण अवधि के दौरान सभी टूना के लिए तथा अलग से येल्लो फिन टूना के लिए सर्वेक्षित क्षेत्र में पकड़ इनडायसेस क्रमशः 1.54% तथा 1.43% रहा । सत्तर के अंतिम दशक में इन आँकडों से जापानी (0.23%) कोरियाई (0.62%) तथा ताइवानी (0.17%) लाँग लाइनरों द्वारा दर्ज की गई हूकिंग दर काफ़ी अधिक है । वर्तमान अध्ययन दर्शाता है कि टूना की हूकिंग दर 0.36% तथा 3.06% के बीच है जो कि भारतीय जल से टूना शोषण के संभाव्यता के लिए सकारात्मक संकेत है ।
पर्ची-3. विशाखापट्टणम के ट्रॉल पकड़ में प्राप्त मछलियों के प्रजातियों की कुंजी
डी सुदर्शन
मछली नमूने की सही पहचानीकरण के महत्व को समझते हुए इस पर्ची में विशाखापट्टणम के ट्रॉल पकड़ में प्राप्त करने के लिए ज्ञात 81 कुटुम्बों से 166 वंश के कुल 273 प्रजातियों की द्विभाजन कुंजी प्रस्तुत की है । अध्ययन से हाल ही के वर्षों में बहुत से वर्गीकृत सुधार नोट किया है, जिसके परिणामस्वरुप अनेक नामकरणों में परिवर्तन हुआ है ।
बुलेटिन सं. 15*(1986): वेड्ज बैंक और मन्नार की खाड़ी के तलमज्जी संसाधनों पर अध्ययन
टी ई शिवप्रकासम
भा.मा.स. के पोत मत्स्य निरीक्षणी द्वारा क्रमशः अक्टूबर 1981-1983 तथा अक्टूबर 1983-मार्च 1985 के दौरान वेड्ज बैंक और मन्नार की खाड़ी के तलमज्जी संसाधन सर्वेक्षण किया गया । तुलनात्मक प्रचुरता पर आँकड़े का विश्लेषण दर्शाता है कि वेड्ज बैंक के मामले में प्रति घंटा पकड़ (98.6 कि. ग्रा. प्रति घंटा) मन्नार की खाडी (133 कि. ग्रा. प्रति घंटा) की तुलना में अपेक्षाकृत कम है । वेड्ज बैंक में पेर्चस की पकड़ दर 19.8 कि. ग्रा. प्रति घंटा तथा मन्नार की खाड़ी में 24.8 कि. ग्रा. प्रति घंटा रही । वेड्ज बैंक में, गहराई स्तर से संबंधित अनुपातिक प्रचुरता प्रकट करता है कि मन्नार की खाड़ी जहाँ 20-50 मी गहराई से उच्च पकड़ दर प्राप्त होती है की तुलना में 100-200 मी. गहराई क्षेत्र से उच्च पकड़ दर प्राप्त होती है । मौसमी परिवर्तन के अवलोकन से यह प्रदर्शित होता है कि वेड्ज बैंक में उच्च पकड़ दर जनवरी और फरवरी में प्राप्त होती है, जबकि मन्नार की खाड़ी में दिसम्बर में होती है । वर्तमान अध्ययन, अध्ययन क्षेत्र में जैवमात्रा परिकलित करने का अवसर प्रदान करता है । वेड्ज बैंक में 7-77 तथा 8-77 क्षेत्र के संबंध में 20-200 मी. गहराई में कुल जैव मात्रा 38,663 टन परिकलित किया है, जबकि मन्नार की खाड़ी में वही गहराई क्षेत्र से 24.114 टन है ।
पर्ची-1. ऊपरी पूर्वी तट के विशेष संदर्भ के साथ भारतीय अनन्य आर्थिक क्षेत्र के मात्स्यिकी संसाधन
डी. सुदर्शन एवं वी. एस सोमवंशी
इस पर्ची में तलमज्जी, मध्य जल/पेलाजिक तथा महासागरीय संसाधनों के सर्वेक्षण के जरिए प्राप्त अद्यतन जानकारी का विवरण दिया है । 1980-86 के दौरान संग्रहित ऑकड़ों का प्रत्येक मत्स्यन विधि/प्रणालियों के संबंध में विश्लेषण किया गया । सर्वेक्षण प्रचालन से ऊपरी पूर्वी तट में 3 प्रकार के संसाधनों की सूचना प्रदान करती है (क) परम्परागत संसाधन (ख) ट्रॉल मत्स्यन के स्थान के बाहर परम्परागत संसाधन जो विस्तारित गहराई से शोषित किया जाएगा (ग) गहरे जल में उपलब्ध अपरम्परागत संसाधन । पर्स सीन प्रचालन का परिणाम, पेलाजिक संसाधनों की विविध प्रकार की उपलब्धियाँ दर्शाता है । पकड़ संयोजन में सायनिड्स, डीकेप्टरिड्स प्रजातियाँ, क्लूपिड्स, मैकरेल, केट फिश, करन्गिड्स पॉमफ्रेट और पेर्चस शामिल है । 200 मी. गहराई से दूर गहरे जल में मछलियों के अपरम्परागत प्रजातियाँ (सेन्ट्रोलोफस नाइजर, प्रियाकेंथस एस पी पी ) तथा अरिस्त्यिस, हेटरोकारपस वंश के गहन समुद्री झींगा तथा गहन समुद्री लॉब्स्टर (प्यूरुलस सेवेल्ली) प्राप्त हुई । संसाधन चित्र प्रकट करता है कि विविधीकृत मत्स्यन तकनीक द्वारा शोषण के लिए हमारे अनन्य आर्थिक क्षेत्र में विविध संसाधन उपलब्ध है ।
पर्ची-2. केरल तट से दूर अपतट, गहन समुद्र एवं महासागरीय मात्स्यिकी संसाधन
पी सुलोचन एवं एम ई जॉन
भारत के समुद्रवर्ती राज्यों, में देश में कुल मछली उत्पादन के लगभग 23% योगदान द्वारा समुद्री मछली उत्पादन में केरल का स्थान सर्वप्रथम है । भा. मा. स. के पोत मत्स्य निरीक्षणी द्वारा तट के समीप किए गए गहन समुद्र तलमज्जी संसाधनों के प्रारंभिक जाँच दर्शाता है कि अक्षांश 8 तथा 9 उ के बाहरी छज्जा और ढाल में स्थायी स्टॉक प्रति यूनिट क्षेत्र आंतरिक छज्जा की तुलना में उच्च रहा । कुछ प्रमुख संसाधन घटक नेमिप्टेरिड्स (35%) तथा 200 मी. गहराई के अंदर 50-100 मी क्षेत्र से केट फिश (22%) रही । महाद्वीपीय छज्जा से पकड़ के 9.17% बड़ी पेर्च रही जिसमें मुख्यतः सेरानिड्स, लुटजेनिड्स एवं लेथ्रिनिडस रही । केरल तट से दूर छज्जा क्षेत्र से तलमज्जी पकड़ के 7.5% स्क्विड एवं कटल फिश रही । अक्षांश 8˚ उ में क्विलोन बैंक से गहन समुद्री झींगा तथा गहन समुद्री लाब्स्टर रिपोर्ट की तथा 14.72 कि.ग्रा. प्रति घंटा औसत पकड दर सूचित की । वेड्ज बैंक क्षेत्र में पकड़ में पेर्चस प्रमुख है । 23.8% का योगदान द्वारा दूसरा मुख्य ग्रुप नेमिप्टेरिड्स रही, उसके बाद रे (10.1%) सेफेलोपोड्स (6.6%) तथा केरन्गिड्स (5.7%) रही । सर्वेक्षण प्रकट करता है कि पेलाजिक झुण्ड/समूह मुख्यतः 60 मी. गहराई के अन्दर उपलब्ध थे ।
पर्ची-3. भारतीय अनन्य आर्थिक क्षेत्र- गहन समुद्र मत्स्यन उद्योग विकास के लिए संसाधनों एवं मानव शक्ति आवश्यकताओं की उपलब्धि
डी. सुदर्शन एवं टी. ई. सिवप्रकासम
200 समुद्री मील तक महासागर के वैधानिक व्यवस्था का विस्तार तटवर्ती राष्ट्रों के सामाजिक आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हुआ है । कुल जैव मात्रा के निर्धारण के आधार पर मत्स्य संसाधनों की उपलब्धता, वर्तमान मछली उत्पादन तथा उपलब्ध जाल, संभाव्य उपज, मात्स्यिकी विकास कार्यक्रम बनाने का मूल आधार है । भा. मा. स. ने प्रयोगात्मक एवं समन्वेषणात्मक मत्स्यन के क्षेत्र में आशाजनक प्रयास किया है । पूर्व तथा वर्तमान अध्ययन के आधार पर पर्ची निर्धारित करता है कि शोषण के वर्तमान दर पर निम्न संख्या में भारतीय अनन्य आर्थिक क्षेत्र में अतिरिक्त पोतें अर्थात् लगभग 3000 यंत्रीकृत नावें 50 मी. तटवर्ती बेल्ट तक, अपतट तथा गहन समुद्र में 50 मी. दूर तक तलमज्जी एवं पेलाजिक संसाधनों के शोषण के लिए लगभग 1000 गहन समुद्र पोतें तथा महासागरीय जल में 500 पोतें जिसमें टूना लाँग लाइनर, पर्स सीनर, पोत एवं लाइनर प्रारंभ किया जा सकता है ।
बुलेटिन सं. 17*(1988): भारतीय अनन्य आर्थिक क्षेत्र में टूना संसाधनों पर आगे का अध्ययन
पर्ची-1. भारत के दक्षिण पश्चिमी तट से दूर 1986-97 के दौरान सर्वेक्षित टूना संसाधनटी ई सिवप्रकासम तथा डी. सुदर्शन
भा. मा. स. के पोत मत्स्य सुगन्धी द्वारा 1986-87 के दौरान भारत के दक्षिण पश्चिमी तट के समीप किए गए टूना लाँग लाइन सर्वेक्षण का परिणाम इस पर्ची में प्रस्तुत किया गया है । अनन्य आर्थिक क्षेत्र में अक्षांश 5-15 उ. तथा देशांतर 69-79 पू. के बीच सर्वेक्षण किया गया । कुल मिलाकर 88,200 हू्क्स प्रचालित किए गए । सभी मछली और टूना के लिए हूकिंग दर क्रमशः 7.69% तथा 5.64% रही । उच्च अक्षांशों में उच्च हूकिंग दर पाई गई । प्रत्येक 1 अक्षांश x1 देशांतर वर्ग के लिए तथा प्रत्येक अक्षांश के लिए प्राप्त हूकिंग दरें प्रस्तुत की हैं । मौसमी परिवर्तन का विश्लेषण दर्शाता है कि फरवरी, अप्रैल तथा दिसंबर में उच्च हूकिंग दर 1.26% से 15.15% के बीच रही । सितम्बर से मई तक पकड़ दर में सामान्य वृद्धि देखी गई । पकड़ संयोजन दर्शाता है कि पकड़ के 73.36% (संख्या द्वारा) टूना रही । उसके बाद शार्क 20.92%, बिल फिश 4.98% तथा अन्य मछलियाँ 0.72% रही । टूना में येल्लो फिन टूना 98% रही । सर्वेक्षण से दक्षिण पश्चिम तट से दूर टूना एवं टूना जैसी मछलियों का वाणिज्यिक संकेंद्रण की उपलब्धि की पृष्टि करता है ।
पर्ची-2 चार्टर प्रचालन द्वारा प्रकटित भारत की पूर्वी तट से दूर टूना संसाधन
एम ई जॉन, एस. एम. पाटील तथा वी. एस. सोमवंशी
भारतीय अनन्य आर्थिक क्षेत्र में गहन समुद्र एवं महासागरीय मत्स्यन को बढ़ाने में भारत सरकार द्वारा अंगीकृत एक विकासात्मक उपाय चार्टर स्कीम के अंतर्गत विदेशी मत्स्यन पोतों को प्रचालन करने हेतु भारतीय उद्यमियों को अनुमति देना है । 1985-88 के दौरान भारत के पूर्वी तट से दूर टूना मत्स्यन में लगे ऐसे चार्टरीकृत लाँग लाइनरों का परिणाम की चर्चा की है । पोत 41-47 मी. ओ ए एल का था तथा मद्रास बन्दरगाह से प्रचालित था । समुद्र भ्रमण 3-4 माह अवधि का था । कुल मिलाकर 731 समुद्र दिन, 594 मत्स्यन दिवस तथा कुल मत्स्यन प्रयास 12.5 लाख हूक के साथ 14 समुद्री यात्राएं की गई । विविध पोतों द्वारा प्रयास प्रति मत्स्यन दिवस 1400-3000 हूक्स था । प्रचालन का मुख्य क्षेत्र अक्षांश 13-18 उ के बीच था । कुल घोषित पकड़ औसत पकड़ के 1.85 टन प्रति मत्स्यन दिवस सहित 1098.3 टन थे । मुख्य घटक में (वजन द्वारा) येल्लो फिन टूना 40.2%, मार्लिन 32.4% तथा स्वोर्ड फिश 9.6% रही । सभी मछली और येल्लो फिन टूना के लिए प्राप्त औसत पकड़ दर क्रमशः 88 कि. ग्रा. प्रति 100 हू्क्स तथा 35.4 कि. ग्रा प्रति 100 हू्क्स रही । येल्लो फिन टूना की हूकिंग दर (संख्या द्वारा) 1.07% परिकलित की है । जनवरी-अप्रैल मुख्य मत्स्यन ऋतु रहा ।
बुलेटिन सं. 18*((1988): भारतीय अनन्य आर्थिक क्षेत्र के समुद्री मात्स्यिकी संसाधन एक अद्यतन
डी सुदर्शन, टी ई सिवप्रकाशम, वी एस सोमवंशी, एम ई जॉन, के एन वी नायर तथा एन्टनी जॉसफ
भारत, जीवित एवं अजीवित संसाधनों से समृद्ध एक समुद्रवर्ती राज्य है । अनेक वर्षों के लिए समुद्री मछली उत्पादन 3.5% वृद्धि दर दर्ज की है तथा वर्तमान उत्पादन लगभग 1.8 मिलियन टन है । 300 मी. गहराई तक महाद्वीपीय छज्जा एवं ढाल 4,38,545 वर्ग कि.मी. (लक्षद्वीप एवं अण्डमान एवं निकोबार जल छोड़कर) परिकलित किया है । समुद्री मात्स्यिकी संसाधनों पर वर्तमान अध्ययन भा. मा. स. के पोतों द्वारा संग्रहित आँकड़े तथा तलमज्जी संसाधनों के मामले में 50 मी. गहराई से बाहर 300 मी गहराई तक वर्तमान अशोषित स्थान से संसाधनों की यात्रा निर्धारित करने का प्रयास तथा महासागरीय संसाधनों के संबंध में अनन्य आर्थिक क्षेत्र सीमा तक तलमज्जी संसाधनों के आधार पर है । यह संकेत करता है कि पश्चिमी तट के समीप स्टॉक घनत्व 40-80 मी. गहराई क्षेत्र में उच्च पाया गया, लेकिन अक्षांश 20 उ. तथा 21 उ में गहराई में वृद्धि के साथ प्रगामी वृद्धि पाई गई । कुछ क्षेत्र में उत्तर पश्चिम तथा दक्षिण पश्चिम तट से 100-150 मी. तथा 150-200 मी. गहराई क्षेत्र में उच्च औसत घनत्व प्राप्त हुआ । पूर्वी तट के समीप 100 मी. गहराई में वृद्धि के साथ संसाधन की प्रचुरता में प्रगामी वृद्धि तथा उसके बाद गिरता झुकाव पाया गया ।
बुलेटिन सं. 19*(1990): उडीसा, पश्चिम बंगाल तट से दूर समुद्री मात्स्यिकी संसाधन
एम ई जॉन तथा डी सुदर्शन
समुद्रवर्ती राज्यों में उडिसा तथा पश्चिम बंगाल छठी और सातवीं योजना के दौरान समुद्री मछली उत्पादन में अपेक्षाकृत उच्च स्तर की वृद्धि दर दर्ज की है । यह राज्य, देश में समु्द्री मछली उत्पादन में (क्रमशः) 2.95% तथा 2.86% योगदान करता है । इस शोध पत्र में 1969 से 1987 के दौरान उड़ीसा और पश्चिम बंगाल तट में भा. मा. स. सर्वेक्षण पोतों द्वारा संचालित मात्स्यिकी संसाधन सर्वेक्षण के परिणामों की चर्चा की हैं । क्षेत्र वार ट्रॉल सर्वेक्षण प्रयास, पकड़ संयोजन, सी पी यू ई (कि. ग्रा प्रति घंटा) तथा तलमज्जी संसाधनों के स्टॉक का अऩुमान सारणीबद्ध फार्म में दिया है । उड़ीसा तट के लिए आकलित कुल अधिक संपोषित उपज 125.6 हजार टन है, जिसमें 85.3 टन तलमज्जी तथा 40.3 हजार टन पेलाजिक संसाधन सम्मिलित है । पश्चिम बंगाल के लिए कुल संपोषित उपज 119.1 हजार टन आकलित किया है जिसमें 87.8 हजार टन तलमज्जी तथा 31.3 हजार टन पेलाजिक संसाधन सम्मिलित है । भविष्य में समुपयोजन के लिए उपलब्ध मुख्य स्टॉक इलास्मोब्रान्चस, कैट फिश, साइनिड्स, मैकरेल, सिल्वर बेल्लिस, पर्चस, पोमफ्रेट, हार्स मैकरेल तथा सारडीन है ।
बुलेटिन सं. 20*(1990): भारतीय अनन्य आर्थिक क्षेत्र में संभाव्य समुद्री मात्स्यिकी संसाधन - एक अद्यतन
डी सुदर्शन, एम ई जॉन तथा वी एस सोमवंशी
इस बुलेटिन में आनुपातिक आधार पर गहन समुद्र मत्स्यन विकसित करने तथा गहन समुद्र फिश स्टॉक के प्रबन्ध में सहायता करने हेतु भारतीय अनन्य आर्थिक क्षेत्र में संभाव्य मात्स्यिकी संसाधन का संशोधित आकलन प्रदान करने का प्रयास किया गया है । महाद्वीपीय छज्जा तथा 500 मी. गहराई तक ढाल से तलमज्जी संसाधनों का अधिकतम संपोषित उपज लगभग 1.93 मिलियन टन है, जिसमें 1.78 मिलियन टन 50 मी. गहराई परिरेखा के भीतर से तथा गहरे जल से 0.65 मिलियन टन अनुमानित है । तट के तौर पर पश्चिमी तट के समीप लक्षद्वीप मिलाकर गहरे जल से 1.25 मिलियन टन संभाव्यता निर्धारित किया गया है । महाद्वीपीय छज्जा के ऊपर कुल पेलाजिक संसाधनों का संभाव्य उपज 1.74 मिलियन टन आकलित किया है । अनुमानित स्टॉक के लगभग 63% पश्चिम तट में है , 25% पूर्वी तट में 4% लक्षद्वीप तथा 8% अण्डमान एवं निकोबार जल में है । 50 मी. गहराई से दूर अपतट क्षेत्र में तटीय टूना, रिब्बन फिश, हार्स मैकरेल एवं पेलाजिक शार्क मुख्य पेलाजिक संसाधन रहा । ये, भारतीय सागर में कम समुपयोजित संसाधनों में है ।
बुलेटिन सं. 21*(1991): भारत के निचले पूर्वी तट से समुद्री मात्स्यिकी संसाधन
टी ई सिवप्रकाशम, पी एस परसुराम, बी प्रेमचन्द, एस. ए. राजकुमार तथा जी नागराजन
अक्षांश 8 उ और 16 उ के बीच भारत के निम्न पूर्वी तट को लगभग 1340 कि.मी. तटीय रेखा तथा लगभग 41,400 वर्ग कि.मी. छज्जा क्षेत्र हैं 1970-80 के दौरान मन्नार की खाड़ी में 17.5 मी. पोत द्वारा किए गए तलमज्जी संसाधन सर्वेक्षण का परिणाम दर्शाता है कि 36% द्वारा पर्चस सबसे प्रमुख संसाधन रहा, उसके बाद शार्क और स्केट रही । मत्स्यन के लिए अर्थात जनवरी से अप्रैल तथा जुलाई से अक्टूबर दो विविध ऋतु है । पोत मत्स्य निरीक्षणी द्वारा सर्वेक्षित 300 मी. गहराई तक वेड्ज बैंक के तलमज्जी संसाधन दर्शाता है कि पेर्चस एवं फाइल फिश (बालिस्टिड्स) लगभग 100 मी. गहराई तक पकड के लगभग 50-60% रही । नेमिप्टेरिड्स प्रजाति और प्रियाकेंथस प्रजाति सहित गहन समुद्र संसाधन का अधिक संकेन्द्रण 100-200 मी. गहराई में है । सभी गहराई क्षेत्र में 200 मी. तक केरन्गिड्स उपलब्ध थी तथा 100-200 उच्च पकड़ दर 175.3 मी. कि. ग्रा प्रति घंटा प्राप्त हुई। अक्षांश 12 उ. मद्रास के दक्षिण में बढ़ती गहराई के साथ 200-300 मी. गहराई में 267 कि.ग्रा. प्रति घंटा उच्च पकड़ दर की वृद्धि पाई गई । 0-50 मी गहराई में केरन्गिड्स, सिल्वर बेल्लिस मैकरेल तथा स्कड पकड में प्रमुख रही । अक्षांश 15 उ में 0-50 मी. में सिल्वर बेल्लिस (30.4%), इसके बाद पेर्चस तथा केरन्गिड्स रही । 50-100 मी. गहराई क्षेत्र में पकड़ के 56.9% रिब्बन फिश तथा सेन्ट्रोलोफस प्रजाति, प्रियाकेंथस प्रजाति प्रमुख रही। पोत मत्स्य हरिनी द्वारा अक्षांश 10˚ उ तथा 15˚ उ के बीच 200 समुद्री मील अनन्य आर्थिक क्षेत्र तक टूना लाँग लाइनिंग द्वारा कोरोमन्डल तट के महासागरीय संसाधनो का सर्वेक्षण किया इनमें सभी क्षेत्रों से येल्लो फिन प्राप्त हुई। हूकिंग दर दर्शाती है कि सर्वेक्षित क्षेत्र टूना मात्स्यिकी के आगे का विकास के लिए सुसाध्य थे ।
बुलेटिन सं. 22*(1992): लक्षद्वीप के मात्स्यिकी संसाधन
पी सिवराज, एम ई जॉन तथा टी ई सिवप्रकासम
संघ राज्य क्षेत्र लक्षद्वीप अक्षांश 8˚ और 12 30 उ. तथा देशांतर 71 तथा 74 पूर्व के बीच कुल भू क्षेत्र 28.5 वर्ग कि. मी के साथ 10 वास योग्य द्वीप तथा 17 अवास योग्य द्वीपों का समूह है । द्वीप में वार्षिक मछली उत्पादन 1979-88 अवधि के दौरान औसत 4820 टन के साथ 2896 से 7298 टन के बीच घटता बढ़ता गया । पोल और लाइन प्रमुख मत्स्यन प्रणाली है तथा स्किपजेक टूना पकड़ के मुख्य घटक है । भा. मा. स. ने 1983-88 के दौरान मत्स्य सुगन्धी से विस्तार टूना लाँग लाइन सर्वेक्षण किया । येलो फिन टूना की उच्च हूकिंग दर रिपोर्ट की गई है । क्षेत्रवार एवं ऋतुवार सर्वेक्षण का परिणाम प्रस्तुत किया है । बेस्से डी पेड्रो बैंक में ट्रॉल सर्वेक्षण पोत मत्स्य वर्षिनी ने बोट्टम ट्रॉलिंग संचालित किया है और इसका परिणाम बुलेटिन में चर्चा की है । फिन फिश के अतिरिक्त, द्वीप समूह समुद्री खीरा एवं आक्टोपस जैसे संसाधनों से संपन्न है । मात्स्यिकी विकास के भावी संभावनाओं पर यह बल दिया जाता है कि बड़े पर्स सीन, पोल एवं लाइन तथा लाँग लाइन पोतों को लगाकर वाणिज्यिक प्रचालन द्वारा अशोषित टूना संसाधनों का शोषित किया जाना है ।
बुलेटिन सं. 23*(1992): स्क्विड के जीवविज्ञान पर नोट के साथ भारत में समन्वेषी स्क्विड जिग्गिंग
पर्ची-1. भारत के पश्चिम तट से दूर समन्वेषी स्क्विड जिग्गिंग का विवरणके एन वी नायर, टी वी नैनान, श्री पी जे जॉसफ तथा एन जगन्नाथ
भा. मा. स. द्वारा किए गए तलमज्जी संसाधन सर्वेक्षण सभी भारतीय तट के समीप सेफेलोपोड के लिए संभाव्य स्थान का अस्तित्व प्रकट करता है । स्क्विड संसाधनों के समन्वेषण के लिए भा. मा. स. द्वारा एक विविधीकृत मत्स्यन प्रणाली अर्थात स्क्वि़ड जिग्गिंग प्रारंभ किया था । इस शोध कागजात में जून 1988 से 1989 तक के दौरान टूना लाँग लाइनर एवं स्क्विड जिग्गिंग पोत मत्स्य सुगन्धी द्वारा दक्षिण पश्चिम तट से दूर संचालित स्क्विड जिग्गिंग का परिणाम प्रस्तुत किया है । गुजरात तट के समीप ट्रॉलर मीना प्रापी पर सीमित स्क्विड जिग्गिंग प्रचालन का प्रयास किया गया था । स्क्विड जिग्गिंग की क्रिया विधि तथा इन्स्टूमेन्टेशन का विवरण की चर्चा की गई है । पोत मत्स्य सुगन्धी ने 25-200 मी. गहराई क्षेत्र में अक्षांश 8 उ तथा 17 उ के बीच नेरिटिक स्क्विड के लिए तथा 500 गहराई क्षेत्र से दूर के क्षेत्र में अक्षांश 10 उ.-14 उ. के बीच महासागरीय स्क्विड के लिए जिग्गिंग संचालित किया । माहवार एवं क्षेत्रवार परिणाम की चर्चा की है । स्क्विड के विविध प्रजातियाँ अर्थात लेलिगो डुवयूसेल्ली, डोरिटेयूथिस एस पी पी तथा सिम्प्लेक्टोटियूथिस एस पी पी के संबंध में जैविक अध्ययन का परिणाम इस शोध कागजात में प्रस्तुत किया है ।
पर्ची -2. स्क्विड का जीव विज्ञान
के पी नायर, एम एम मेय्यप्पन, पी एस कुरियाक्कोस, पी सर्वेक्षण, ए पी लिफ्टन, एस मोहम्मद, पी के अशोकन, एम जॉसफ तथा डी नागराज
अक्षांश 8˚-17˚ उ के बीच पश्चिमी तट के समीप स्क्विड जिग्गिंग में प्राप्त स्क्विड का जीव विज्ञान इस शोध कागजात में प्रस्तुत किया गया है । प्रचालन की गहराई 20-200 मी गहराई के आसपास रही । जिग्गिंग सर्वेक्षण में लिए गए स्क्विड तीन वंश अर्थात लोलिग, डेरियूथिस तथा सिम्प्लेक्टोयूथिस का है । स्क्विड के तीन वंश का आकार संयोजन, लिंग अनुपात, परिपक्वन तथा लम्बाई-वजन संबंध पर अध्ययन की चर्चा की है । नर लोलिगो डुवयुसेल्ली की पृष्ठीय मेन्टिल लम्बाई 50 मि. मी. से 310 मि. मी. के आसपास रही । मादा 50 मिमी-230 मिमी के बीच लम्बाई में छोटी थी । नर की लम्बाई आवृत्ति 125 मिमी के रुप में मॉडेल साइज सूचित किया है तथा मादा मल्टी मॉडेल या बाई मॉडेल वितरण दर्शाई है । लम्बाई के संबंध में वजन में वृद्धि दर, लिंगो में विविधता पाई गई । डोरियूथिस प्रजाति नर में बहुरुपात्मक वितरण था तथा मादा में 145-156 मि मी क्षेत्र मॉड के साथ द्विरुपात्मक वितरण था । नर-मादा अनुपात 66:34 था । सिम्प्लेक्टोटियूथिस औलेनियनसिस नर का आकार 80-190 मिमी तथा मादा का आकार 80-250 मिमी के आसपास था । 100-200 मिमी लम्बाई के आसपास स्क्विड कुल संख्या के 99% योगदान किया । परिपक्व नर का सबसे छोटा आकार 90 मिमी था तथा परिपक्व मादा का 100 मिमी था । लिंग अनुपात 36:64 के साथ नर, मादा से संख्या में अधिक था । आगे यह अवलोकन किया जाता है कि उपर्युक्त तीन वंश की प्रजातियाँ कृत्रिम प्रकाश की ओर आकर्षित की जा सकती है तथा किशोर मछलियों को बिना कोई प्रभाव से जिग्ग की जा सकती है । यदि प्रणाली आर्थिक रुप से उपयुक्त हो तो यह स्क्विड के पैदावार के लिए सबसे उपयुक्त मत्स्यन प्रणाली होगी ।
पर्ची -1. भारत के उत्तर पूर्वी तट के समीप भारतीय ड्रिफ्ट फिश अरियोम्मा इण्डिका (डे) के वितरण और जीव विज्ञान पर अवलोकन
पॉल पाण्डियन तथा के पी फिलिप
अरियोम्मा इन्डिका भारतीय तट के समीप प्राप्त होने वाली नेरिटिक गहन जल मछली है । भारतीय मात्स्यिकी सर्वेक्षण द्वारा समन्वेषी सर्वेक्षण पूर्वी तट में 50-150 मी गहराई में तथा पश्चिम तट में 50-100 मी गहराई में इन प्रजातियों की उपलब्धि सूचित करती है । उत्तर पूर्वी तट के समीप स्टॉक के योगदान स्वरुप एवं जीव विज्ञान इस अध्ययन में प्रस्तुत है । 1988-90 की अवधि के दौरान भा.मा.स. के पोत मत्स्य दर्शिनी पर बोट्टम ट्रॉल सर्वेक्षण द्वारा संग्रहित आँकडे़ का प्रयोग किया गया । नर एवं मादा के लिए अलग से लम्बाई वजन संबंध का आकलन किया गया । लम्बाई आवृत्ति वितरण अधिकांश नमूनों में एकल मॉड संकेत किया है । लिंग अनुपात नर की प्रधानता दर्शाता है । प्रणालियों का वितरण स्वरुप 140 मी गहराई तक उपलब्धि दर्शाई है तथा 50-100 मी गहराई क्षेत्र से उच्च पकड़ दर प्राप्त हुई । फरवरी माह में उच्च पकड़ दर पाई गई ।
पर्ची -2. 1988-90 के दौरान 7˚ उ एवं 11˚ उ के बीच दक्षिण पश्चिम तट, वेड्ज बैंक एवं मन्नार की खाड़ी के समीप तलमज्जी संसाधन सर्वेक्षण पर अवलोकन
टी वी नैनन, वी सिवाजी, एन जगन्नाथ एवं एल रामलिंगम
अप्रैल 1988 से मार्च 1990 के दौरान पोत मत्स्य निरीक्षणी द्वारा दक्षिण पश्चिम तट, वेड्ज बैंक एवं मन्नार की खाड़ी के समीप अक्षांश 7˚ उ और 11˚ उ के बीच तलमज्जी संसाधन सर्वेक्षण का परिणाम इस पर्ची में प्रस्तुत किया है । स्तरित यादृच्छिक नमूनीकरण के बाद सर्वेक्षण संचालित किया गया । गहराई क्षेत्र 30-500 मी था तथा कुल नमूना प्रयास 3080 था । पकड़ संयोजन में विविधता तथा अक्षांश, गहराई क्षेत्र एवं ऋतुओं के संदर्भ में सी पी यू इ की चर्चा की गई । दक्षिण पश्चिम तट के तलमज्जी स्टॉक का जैव मात्रा 83,200 टन परिकलित किया है । वेड्ज बैंक एवं मन्नार की खाड़ी में अनुमानित जैव मात्रा क्रमशः 89,200 टन एवं 16,190 टन है अधिकतम संपोषित उपज का अनुमान इस पर्ची में दिया है ।
पर्ची -3. टूना लाँग लाइनिंग द्वारा भारतीय अनन्य आर्थिक क्षेत्र के अण्डमान जल में पकड़ी गई येलो फिन टूना (थून्नस अलबकेरस) का आहार एवं आहारी आचरण पर एक अध्यययन
के विजयकुमारन, पी एस परसुरामन एवं जी नागराजन
अण्डमान जल से लाँग लाइन गियर में प्राप्त येल्लो फिन टूना का आहार एवं आहारी आचरण पर एक अध्ययन किया गया है । कुल 188 नमूनों का आँत्र अन्तर्वस्तु विश्लेषण किया गया । यह पाया गया है कि प्रति येल्लो फिन टूना के उदर वस्तु का औसत वजन 106 ग्राम था, जिसमें 93.43% शिकार, 3.8% अर्ध पचा हुआ भोजन तथा 2.8% पची हुई सामग्री शामिल है । नर का आहार ग्रहण मादा से उच्च पाया गया । एक येल्लो फिन टूना प्रति दिन एवं प्रति वर्ष उपभोज्य शिकार क्रमशः 507 ग्राम एवं 185 कि. ग्रा अनुमानित किया है । जिसमें गहन समुद्र मछलियाँ 13.5% अन्य टेलिओस्ट 2.5% सेफेलोपोड्स 30.8% तथा क्रस्टेशियन्स 30.3% शामिल है ।
पर्ची -4. मत्स्य जीवन द्वारा प्रचालित 27.5 मी बोट्टम ट्रॉल का जाल चयनात्मकता पर अध्ययन
टी ई सिवप्रकासम, के विजयकुमारन, पी एस परसुरामन तथा एस ए राजकुमार
आच्छादित कोड एण्ड प्रणाली द्वारा ट्रॉल जाल चयनात्मकता पर अध्ययन का परिणाम इस पर्ची में प्रस्तुत है । जुलाई-अगस्त 1988 के दौरान तमिलनाडु एवं आन्ध्र प्रदेश तट के समीप मात्स्यिकी संसाधन सर्वेक्षण में लगे हुए भा. मा. स. का सर्वेक्षण पोत मत्स्य जीवन पर अध्ययन किया गया । अध्ययन की गई प्रजातियाँ नेमिप्टेरस जपोनिकस, सौरिडा तुम्बिल, डीकेप्टरस रस्सेली, सेक्यूटर इनसिडेटर, जेरस सेटिफेर, उपनियस विटाटस, यू सलफूरियस तथा स्पैरेना ओबटुसेटा थी सभी आठ प्रजातियों के लिए जाल चयन कारक निर्धारित था ।
पर्ची -5. टूना लाँग लाइनर्स से टूना संसाधन लागत एवं उपार्जन
के विजयकुमारन, ए एनरोस तथा जे ई प्रभाकर राज
यद्यपि भारतीय जल में बृहत टूना संसाधन है, शायद ऐसे साहसिक कार्य आर्थिक व्यवहार्यता परिकलित न करने के कारण, मत्स्यन उद्योग उपयोजन के क्षेत्र में अब तक प्रवेश नहीं किया है । इस शोध कागजात में पूँजी एवं परिवर्तनशीलता लागत, लागत लाभ अनुपात, बट्टा नकद बहाव तथा प्रति लाभ का प्रतिशत पर विचार करते हुए आर्थिक पहलुओं को विश्लेषित करने का प्रयास किया है । भारतीय अनन्य आर्थिक क्षेत्र में प्रचालित 14 चार्टींकृत विदेशी पोतों द्वारा टूना लाँग लाइनिंग का परिणाम पर पकड प्रक्षेपण आधारित है । भा. मा. स. का 36.5 मी लाँग लाइन सर्वेक्षण की पूँजी एवं प्रचालन लागत, समुचित समायोजन, आर्थिक विश्लेषण का आधार बना है । एक साल के लिए एक पोत का लागत एवं प्रति लाभ विश्लेषण 0.683 का लागत हित अनुपात 0.794 का कुल लाभ अनुपात 0.285 का निवल लाभ अनुपात दर्शाता है । परियोजना पर खर्च करने की अवधि 1.39 वर्ष है । निवल वर्तमान मूल्य अत्यंत सामान्य (6389330) है जो यह (दर्शाता) कि परियोजना आर्थिक रुप में व्यवहार्य है।
बुलेटिन सं. 25*(1995): गुजरात तट से समुद्री मात्स्यिकी संसाधन
ए के भार्गव, एस वर्गीस, वी.वी नाइक तथा एम ई जॉन
भारत के समुद्रवर्ती राज्यों में गुजरात की सबसे लम्बी लटीय रेखा तथा विस्तृत छज्जा क्षेत्र है । दक्षिण पश्चिम मानसून के दौरान समुद्री जल का निचली सतह से ऊपरी सतह पर आना तथा साबरमती, ताप्ती एवं नर्मदा नदियों का अप्रवाह से अपतट क्षेत्र समृद्ध बना है । यह क्षेत्र में कुछ प्रमुख वाणिज्यिक मात्स्यिकी को संपोषित करता है । इस बुलेटिन में 1992 तक गुजरात तट के समीप (अक्षांश 20˚ उ से 23˚ उ) विभिन्न प्रकार के पोतों और गियर द्वारा संचालित समुद्री मात्स्यिकी संसाधनों का सर्वेक्षण विवरण प्रस्तुत किया गया है । द्वारका तथा कच्छ से दूर उत्तर क्षेत्र विश्व के सबसे समृद्ध मत्स्यन स्थानो में तुलनात्मक रुप से तुलनायोग्य अधिक उत्पादक क्षेत्र है । 1977 के दौरान एम. टी. मुरैना द्वारा 1979-80 के दौरान मत्स्य निरीक्षणी तथा 1991 92 के दौरान मत्स्य मोहिनी द्वारा किए गए तलमज्जी संसाधन सर्वेक्षण दर्शाता है कि गुजरात तट में शार्क, केट फिश पेर्चस, पोमफ्रेट, सायनिड्स, पोलिनेमिड्स, सीर फिश, क्लूपिड्स, स्क्विड एवं कटल फिश की संभाव्यता है । जैव मात्रा एवं स्टॉक घनत्व का अनुमान दर्शाता है कि अक्षांश 23˚ उ से वही गहराई के अंतर्गत उच्च घनत्व 11.3 टन/वर्ग किमी का अवलोकन किया गया । अपतट जल से 50 मी. गहराई तक कुल जैव मात्रा का आकलन किया गया । 0-50 मी. गहराई में अधिकतम संपोषित उपज 81.6% देखा गया तथा यह दर्शाता है कि गुजरात तट पेलाजिक एवं तलमज्जी संसाधनों के समुपयोजन के लिए उपजाऊ है ।
बुलेटिन सं. 26*(1998): भारतीय समुद्र में मात्स्यिकी जीव विज्ञान में योगदान
वी एस सोमवंशी, एम ई जॉन (इ डी एस)
शोध पर्ची-1. भारत के उत्तर पूर्वी तट से धारीदार गोट फिश उपिनियस विट्टाटस के कुछ जैविक पहलुओं का अध्ययन ।
डी. एम. अली तथा के गोपालकृष्णन
इस शोध पर्ची में उत्तर पूर्वी तट से उपिनियस विट्टाटस के जीव विज्ञान पर कुछ पहलुओं को प्रस्तुत किया है । वॉन बरटलनफि वृद्धि प्राचल लू (Loo)=214 मि.मी, के (K) = 0.63 तथा टी (t) =0.05 के रुप में व्युत्पन्न हुआ । प्राप्त मार्त्यता गुणांक जेड (Z) = 3.6 तथा एम (M) = 0.8 है । लिंगानुपात, मादा की प्रधानता सूचित करती है । लम्बाई-वजन संबंध नियमानुसार परिकलित किया है ।
नर (Males) लॉग (Log) डब्लू (W) = -4.7983 + 3.2071 लॉग (Log) एल (L)
मादा (Females) लॉग (Log) डब्लू (W) = -5.4934 + 3.4285 लॉग (Log) एल (L)शोध पर्ची 2. गहन समुद्री लॉबस्टर प्यूरुलुस सेवेल्ली (रमडान) का लम्बाई-वजन संबंध, आकार वितरण एवं लिंगानुपात पर कुछ अवलोकन
पी पॉल पाण्डियन तथा जी के अव्हाड
गहन समुद्री स्पाइनी लाब्स्टर दक्षिण पश्चिम तट से प्यूरुलस सेवेल्ली का लम्बाई-वजन संबंध, आकार वितरण तथा लिंगानुपात की जाँच की गई । लम्बाई-वजन मापो में डब्ल्यू(w) = एल एल बी (aLb) समीकरण द्वारा सब से बेहतर पाया गया तथा प्राप्त संबंध निम्नानुसार है ।
नर (Male) डब्ल्यू(W) = 0.0103 एल(L) 2.9625, मादा(Female) डब्ल्यू(W) = 0.0107 एल(L) 2.9402
मिश्रित (संयुक्त रुप में) ( Combined) डब्ल्यू(W) = 0.0101 एल (L) 2.9702
लाब्स्टर का आकार कुल लम्बाई में 104 से 192 मि मी के बीच रहा । नर के लिए मादक का अनुपात 1:1.29 था ।पर्ची - 3. भारत के ऊपरी पूर्वी तट से प्रियाक्रेंथस हेमरुर (फोरस्फल) का आहार एवं आहारी आचरण
के पी फिलिप
भारत के ऊपरी पूर्वी तट से प्रियाकिन्थस हेमरुर का आहार एवं आहारी आचरण पर एक अध्ययन से यह प्रकट होता है कि यह क्रस्टेशियन्स एवं टेलिओस्ट मछलियों को खाने वाली मांसाहारी प्रजाति है । पहचानयोग्य खाद्य पदार्थों में लगभग 60 प्रतिशत अलिमा, स्क्विल्ला, केकडा, झींगा तथा यूफोसिड्स जैसे क्रस्टेशियन्स शामिल है । टेलिओस्ट मछलियों में ब्रेगमेसेरोस प्रजाति, ईल प्रमुख थी । खाद्य घटक की प्रचुरता में मौसम का अध्ययन किया गया । गहरे जल से मछलियों में खाद्य की विविधता कम था । किशोर मछलियाँ छोटे क्रस्टेशियन्स को प्राथमिकता दी है । जनवरी से जून के दौरान भोजन मात्रा उच्च था और जुलाई से दिसंबर के दौरान निम्न था । परिस्थिति दशा परिपक्वता से भोजन मात्रा के साथ अच्छा संबंध दर्शाया है । पी हेमरुर एवं नेमिप्टेरिड्स जपोनिकस के आहार पदार्थों का तुलनात्मक अध्ययन आहार पदार्थों में अच्छी अतिव्याप्ति दर्शाई है ।
पर्ची - 4. भारत के उत्तर पश्चिमी तट के समीप उपिनियस मोलुससेनसिस के आहार एवं आहारी आचरण पर अध्ययन
ए के भार्गव तथा वी एस सोमवंशी
भारतीय तट के समीप गौण मात्स्यिकी संगठित करने हेतु मुल्लिडे कुटुम्ब के गोट फिश का आर्थिक महत्व है । उत्तर-पश्चिम तट के समीप प्राप्त होने वाली रेड मुल्लेटों में उपिनियस मोलूकसेनसिट प्रमुख प्रजाति है । आहार एवं आहारी आचरण पर अध्ययन सूचित करता है कि यू मोलूससेनसिस के प्रमुख आहार श्रिम्प है । छोटे नमूनें, किशोर मछलियों एवं केकडों का भी उपयोग करते हैं । छोटे नमूनों की तुलना में 14 सेमी लम्बाई से ऊपर की मछलियाँ सक्रिय रुप से भोजन करती है ।
पर्ची - 5. भारत के उत्तर पश्चिमी तट से दूर केट फिश अरियस तलरिसनस (रुप्पेल) के परिपक्वता एवं अंडजनन
मनाली ए परब
अरियस थलसिनस का परिपक्वता चक्र का विवरण दिया है । परिपक्व अंडाणू का 15-18 मि मी व्यास में, प्रथम परिपक्वता का आकार 36.0 सेमी है । अप्रैल से अगस्त के दौरान वर्ष में एक बार मछली प्रजनन करती है। 1:1.23 नर मादा अनुपात के साथ मादा प्रमुख है । जनन क्षमता प्रति मादा 34 एवं 88 अण्डाणु के बीच भिन्न है । नर द्वारा पैतृक देखभाल प्रदर्शित है ।
पर्ची - 6. बंगाल की खाड़ी में येल्लो फिन टूना थुन्नस अलबकेरस का पुनरुत्पादक जीव विज्ञान पर कुछ पहलुएं
एम ई जॉन, एम नीलकण्डन, वी सिवाजी, बी प्रेमचनद, पी एस परसुरामन, एम के सजीवन तथा पी सिवराज
बंगाल की खाड़ी में लाँग लाइन गियर में प्राप्त येल्लो फिन टूना के पुनरुपादन जीव विज्ञान पर कुछ पहलुओं पर चर्चा की गई है । लिंगानुपात 2.45:1 के साथ नर प्रमुख है । 140 सेमी लम्बाई से ऊपर की बड़ी मछली में नर की प्रधानता बढती जा रही है तथा 160 सेमी लम्बाई से ऊपर सभी मछलियाँ नर है । चिवर्ग मूल्यके महत्वपूर्ण स्तर के साथ सभी ऋतुओं में लिंग अनुपात समनुरुप है । जनन सूची एवं समूह परिपक्वता सूची के संदर्भ में किए गए अध्ययन से परिपक्वता अध्ययन सूचित करता है कि प्रजाति नवम्बर से अप्रैल के दौरान पैदा होती है । इन्डो पेसिफिक महासागर के विविध क्षेत्रों में रिपोर्ट की गई प्रजातियों के अंडजनन ऋतु के साथ तुलना की है ।
पर्ची - 7. उत्तर-पश्चिम भार तीय अनन्य आर्थिक क्षेत्र के समीप प्राप्त प्रियाकेन्थस हेमरुर का लम्बाई वजन संबंध
एस वर्गीस.
भारत के उत्तर-पश्चिम तट से प्रियाकेन्थस हेमरुर का लम्बाई वजन संबंध का आकलन किया है । प्राप्त परिणाम दर्शाता है कि नर के लिए घातांक 'बी' का मूल्य 2,6285 है मादा के लिए 2,8803 तथा संयुक्त दोनों लिंगो के लिए 2,7810 है । प्रजातियों की वृद्धि अलोमेट्रिक है । दक्षिण पूर्व एशियाई जल में प्राप्त होने वाली प्रियाकेंथिडे की विविध प्रजातियों का लम्बाई-वजन संबंध के साथ परिणाम की तुलना की जा सकती है ।
पर्ची - 8. अक्रोपोमा जपोनिकम (गुन्थर 1859) : (पीसस, पेर्सिफोम्स एक्रोपोमटिडे) जीवन विज्ञान पर प्रारंभिक अध्ययन
एस के नाईक एवं डी ई उइके
एक्रोपोमाटिड्स गहन समुद्री मछलियाँ कभी कभी महाद्वीपीय छज्जा के समीप 100 मी. गहराई से दूर तलमज्जी पकड़ में पाई जाती है । मार्च-अप्रैल 1996 के दौरान भारत के मध्य पश्चिम तट से पकड़ी गई एक्रोयोमा जपोनिकम इस अध्ययन के लिए प्रयोग किया गया । नमूने का आकार 9.6-14.0 सेमी का आसपास रहा एवं वजन 8-34 ग्राम रहा । लम्बाई वजन संबंध डब्ल्यू =0.020416 एल 2.748689 है । मादा के पक्ष में लिंगानुपात 1:5.43 का अवलोकन किया गया छोटे व्यक्तियों में नर तथा बड़े आकार समूह में मादा प्रमुख रहे । प्रति ग्राम शरीर वजन औसत 208 अंडों के औसत सहित 471 से 5331 तक के बीच जनन क्षमता पाया गया । इन मछलियों का मुख्य आहार छोटे झींगा हैं ।
पर्ची - 9. भारत के उत्तर पश्चिमी तट के समीप इण्डियन स्कड, डीकेप्टरिड्स रस्सेल्ली (रुप्पेल, 1830) में परिपक्वता एवं अंडजनन पर अवलोकन
ए वी तम्हणे एवं वी एस सोमवंशी
केरन्गिडे परिवार के इण्डियन स्क्विड, डीकेप्टरिड्स रस्सेल्ली एक वाणिज्यिक प्रमुख मछली है । दीर्घकालीन अंडजनन ऋतु के साथ इसका वर्ष में एक बार प्रजनन होता है । प्रथम परिपक्वता का न्यूनतम आकार 13.5 से.मी निर्धारित किया है अध्ययन की संपूर्ण अवधि के लिए लिंगानुपात 1:1.2 है । अध्ययन की अवधि के दौरान मादा प्रमुख पाई गई ।
बुलेटिन संख्या 27*(2000): भारतीय अनन्य आर्थिक क्षेत्र के उत्तर-पश्चिम क्षेत्र में महासागरीय टूना संसाधन
के गोविन्दराज, एम ई जॉन, प्रेमचन्द, एन उन्निकृष्णन, जेकब थॉमस एवं वी एस सोमवंशीभारतीय अनन्य आर्थिक क्षेत्र से समुद्री मछली उत्पादन बढाने के लिए महासागरीय टूना एवं संबंधित स्टॉक मुख्य संसाधन आधार बना है । टूना संसाधनों के उपयोग आगे बढाते हुए सही जानकारी उत्पन्न करने के लिए भारतीय मात्स्यिकी सर्वेक्षण टूना लाँग लाइनिंग द्वारा गहन तैराई बड़े पेलाजिक के सर्वेक्षण किया जाता है । 1996-98 के दौरान भारत के उत्तर-पश्चिमी तट के समीप पोत येल्लो फिन पर किए गए सर्वेक्षण का परिणाम इस बुलेटिन में सम्मिलित है।
बुलेटिन सं. 28* (2005): अण्डमान एवं निकोबार द्वीपों के चारों ओर भारतीय अनन्य आर्थिक क्षेत्र के मात्स्यिकी संसाधन
एम ई जॉन, ए. के. भार्गव, एस वर्गीस, डी के गुलाटी, अशोक एस कदम एवं एस. के. द्विवेदीअण्डमान एवं निकोबार द्वीप समूह बंगाल की खाड़ी के दक्षिण में अक्षांश 6˚ 45' उ एवं 13˚ 41' उ एवं देशांतर 92' 12' पू. तथा 93˚ 57' पू के बीच स्थित है । कुल तटीय रेखा की लम्बाई 1962 किमी है, जो कि भारत के तटीय रेखा के लगभग एक चौथाई है । द्वीपों के अनन्य आर्थिक क्षेत्र 0.6 मिलियन किमी2 का क्षेत्र घेरा हुआ है जो कि अनन्य आर्थिक क्षेत्र के लगभग 30 प्रतिशत है ।
मात्स्यिकी द्वीपों के एक मुख्य नैसर्गिक संसाधन है । द्वीप के जल में मछलियों की 1200 से अधिक प्रजातियाँ पाई जाती है ।
यद्यपि, विगत में विविध विशेषज्ञ समूह एवं टास्क फोर्स द्वारा विकास योजनाएं प्रस्तावित की गई थी । विनिश्चित प्रयास अब तक किया जाना है तथा अधिकांश तौर पर अण्डमान एवं निकोबार जल के मात्स्यिकी संसाधन अशोषित रह गया है ।
भारतीय मात्स्यिकी सर्वेक्षण ने विविधीकृत प्रणालियों द्वारा अण्डमान एवं निकोबार जल में तलमज्जी, नेरिटिक, पेलाजिक एवं महासागरीय संसाधनों के समन्वेषी सर्वेक्षण किया है । पिछले तीन दशकों के दौरान किए गए सर्वेक्षण से द्वीप समूहों के चारों ओर अनन्य आर्थिक क्षेत्र में फसल लेने योग्य संसाधनों का संयोजन एवं महत्व पर बहुत अमूल्य सूचना प्रदान की है ।
इस बुलेटिन में अब तक किए गए संसाधन सर्वेक्षण के आधार पर अण्डमान एवं निकोबार जल में समुद्री मात्स्यिकी संसाधनों पर अद्यतन सूचना प्रदान की है । संसाधन संभाव्यता का पुनः निर्धारण किया है तथा विकासात्मक संभावनाओं की भी चर्चा की है ।बुलेटिन सं. 29 (2008): भारतीय समुद्र में लॉग लाइन मात्स्यिकी में विनाश (ड्रिप्रिडेशन)
एस वर्गीस, वी. एस. सोमवंशी एवं सिजो पी वर्गीसपेलाजि् लॉग लाइन गियरों पर पकडी गई मछलियों का ड्रिप्रिडेशन वैश्विक असाधारण घटना है, जो कि राष्ट्रीय एवं वैश्विक स्तर से संबंधित मामलों को संबोधन करने हेतु वैज्ञानिकों एवं मछुआरे समुदायों का ध्यान आकर्षित करता है । 2000-06 के दौरान भारतीय मात्स्यिकी सर्वेक्षण टूना लॉग लाइन पोतों के सर्वेक्षण क्रूस के दौरान संग्रहित ड्रिप्रिडेशन आँकडों का विश्लेषण किया गया तथा अ आ क्षे के तीन क्षेत्रों अरब सागर, अंडमान एवं निकोबार समुद्र एवं पूर्वी तट, में क्षेत्रवाद डिप्रिडेशन दर, डिप्रिडेशन क्रूस के संदर्भ में डिप्रिडेशन सेट तथा संपूर्ण प्रचालन हेतु परिकलित एवं प्रस्तुत किया है । भारतीय अनन्य आर्थिक क्षेत्र के लिए डिप्रिडेटड समुद्री मात्रा के लिए परिकलित डिप्रिडेशन दर 2.76% है (मछलियों की संख्या द्वारा) तथा प्रिडेटड सेट से संबंधित मूल्य में लगभग 16.23% ( संख्या द्वारा) पाया गया । जैसे सूचक विभिन्न प्रकार का था, विविध वर्षों एवं महीनों में डिप्रिडेशन में कोई विशेष प्रवृत्ति नही दिखाई दी । डिप्रिडेशन दर में गियर प्रकार अर्थात् मोनोफिलमेंट या मल्टीफिलमेंट गियर से सीधा संबंध भी नहीं देखा गया । अधिक प्रभावित प्रजातियाँ टूना, स्वोर्ड फिश, सेईल फिश एवं सीर फिश हैं । लाइन पर हूक की गई सभी प्रजातियाँ, डिप्रिडेशन के अधीन लेकिन विविध अनुपात में पाई गई । अतः डिप्रिडेशन न प्रजाति विशिष्ट समय विशिष्ट प्रकट हुआ । तीन विविध क्षेत्रों में, डिप्रिडटड समुद्री यात्रा हेतु अंडमान एवं निकोबार समुद्र में डिप्रिडेशन दर (2.99% ) अधिक पाई गई । इसके बाद अरब सागर (2.57%) तथा बंगाल की खाड़ी (2.08%) इसी तरह अण्डमान एवं निकोबार समुद्र के लिए डिप्रिडेटड सेट का सूचना 17.06% अरब सागर के लिए 14.15% तथा बंगाल की खाड़ी के लिए 12.5% पाए गए ।
बुलेटिन सं. 30 (2008): भारतीय अनन्य आर्थिक क्षेत्र में महासागरीय टूना एवं संबंधित संसाधनों के पैदावर हेतु मोनोफिलमेंट लॉग लाइन प्रौद्योगिकी का आरंभ-
-वी. एस. सोमवंशी, एस. वर्गीस एवं सिजो पी वर्गीसनई प्रौद्योगिकी का आरंभ से प्रकाशित नए संसाधनों का पता लगाने के लिए गहन समुद्र की खोज़ तटीय राष्ट्रों को मछली उत्पादन बढ़ाने में मद्द करती है । भारतीय समुद्रों में मोनोफिलमेंट लाँग लाइनिंग प्रौद्योगिकी को आरंभ एवं लोकप्रिय बनाने के उद्देश्य से, भारतीय मात्स्यिकी सर्वेक्षण ने मत्स्य वृष्टि एवं मत्स्य दृष्टि नाम का दे । मोनोफिलमेंट लाँग लाइन प्राप्त किया है जो कि भारतीय अनन्य आर्थिक क्षेत्र के भीतर पश्चिमी तट के समीप अरब सागर तथा पूर्वी तट में बंगाल की खाड़ी एवं अंडमान एवं निकोबार समुद्र में क्रमशः सर्वेक्षण हेतु परिनियोजित किया जाता है । परम्परागत मल्टीफिलमेंट गियर के साथ आधुनिक मोनोफिलमेंट गियर की दक्षता का मूल्यांकन हेतु उक्त अवधि के दौरान दो गियरों की तुलना का प्रयास इस बुलेटिन में किया है । स्पेशियों-टेम्परल विभिन्नता प्रदान करने के अतिरिक्त, मोनोफिलमेंट और परम्परागत मल्टीफिलमेंट द्वारा हूक की गई मछलियों की तुलना में प्रत्येक प्रजाति की मछली का आकार एवं वजन पर सूचना प्रस्तुत करने हेतु प्रयास किया गया है । 2005-07 के दौरान पश्चिम तट के समीप अरब सागर में संचालित मोनोफिलमेट लाँग लाइन सर्वेक्षण का परिणाम से सभी मछलियों के लिए कुल एच आर 1.1% तथा येल्लोफिन टूना के लिए 0.37% एच आर, जहाँ कुल पकड के 40% में यह प्रजाति सम्मिलित रही । टूना एवं संबंधित प्रजातियों का स्पेशियल वितरण 18˚ उ से दूर अक्षांशों में उच्च हूकिंग दर दर्शाती है । अक्षांश 22˚ उ के 22-67 क्षेत्र से सभी मछिलियों के लिए उच्च एच आर 10.5% तथा केवल वाइ एफ टी के लिए 10.4% दर्ज किया गया । इस तट के समीप येल्लोफिन टूना के लिए मौसमी अनुकूल अप्रैल-दिसंबर, चरम माह अप्रैल, मई एवं अगस्त अवलोकन किया गया । पूर्वी तट ( बंगाल की खाड़ी) के समीप सर्वेक्षण से सभी मछलियों के लिए एच आर 1.01% वर्ष 2005-06 के दौरान एवं 0.85% 2006-07 के दौरान प्राप्त हुई । येल्लोफिन टूना के लिए औसत एच आर पकड़ के 0.41% एवं 51.5% था जिसमें टूना शामिल था । हूकिंग दर में मौसमी परिवर्तन पूर्वी तट के समीप टूना फिशिंग के लिए जून से दिसंबर की अवधि अच्छा समय दर्शाता है। पूर्वी तट के समीप येल्लोफिन टूना का स्पेशियल वितरण सूचित करता है कि येल्लोफिन टूना के लिए उच्च हूकिंग दर के कुछ क्षेत्र 13-80 (0.9%), 15-82(0.71%), 16-82, 16-83(1.2%प्रत्येक) तथा 17.83 (0.88%) है । भारतीय अनन्य आर्थिक क्षेत्र में दो वर्ष की अवधि के दौरान दोनों पोतों से औसत हूकिंग दर 0.93% प्राप्त हुई । अरब सागर येल्लोफिन एवं बंगाल की खाड़ी में ब्लू मार्लिन द्वारा किए गए मल्टीफिलमेंट लाँग लाइनिंग के प्रचालन के परिणामों की तुलना यह दर्शाता है कि मोनोफिलमेंट लाँग लाइनिंग में प्राप्त हूकिंग दर उच्च थी । सामान्यतः कुल एच. आर. (हूकिंग दर) में बढत, शार्क की हूकिंग दर में महत्वपूर्ण कमी के साथ विशेषकर टूना के लिए मोनोफिलमेंट प्रचालन के दौरान देखा गया ।
2. विशेष प्रकाशनः प्रचालित गियर, फिश स्टॉक निर्धारण, टूना मात्स्यिकी आदि की ग्रन्थ सूची सहित विशेष प्रकाशन, कुल 5 प्रकाशन प्रकाशित की गई । |
विशेष प्रकाशन सं. 1* (1979): इ एफ पी द्वारा प्रचालित ट्रॉल गियर
एम स्वामीनाथन, मोहम्मद रोशन अख्तर, एम के आर नायर, एम ई जॉन, एन्टनी जॉसफ एवं एस वर्गीस.
यह प्रकाशन 1946 में इसके प्रारंभ से समन्वेषी मात्स्यिकी परियोजना के पोतों के विविध वर्गों द्वारा प्रचालित ट्रॉल नेट के अभिकरण के साथ संबंध रखता है । निर्माण पर प्रमुख ब्यौरा के साथ जाल का विविध भाग का विवरण दिया गया है । दो सीम फिश ट्रॉल तथा चार सीम श्रिम्प ट्रॉल के विविध आकार के निर्माण चित्र एवं आँकड़ा पोतों एवं ओट्टर बोर्ड के साथ जिससे जाल का प्रचालन किए गए थे का ब्यौरा सहित विशेष उल्लेख किया है । अवधि के दौरान विविध आकार के ओट्टर बोर्ड का प्रयोग परियोजना पोतों द्वारा किया गया, विशेषकर परम्परागत चपटा प्रकार एवं हाल ही में प्रारंभित ओवल प्रकार । रिग्गिंग स्वरुप के साथ विशेष मापन सहित चित्र प्रस्तुत किया है । ट्रॉल जाल का विविध आकार का लागत विवरण एवं तकनीकी शब्दावली भी दी है ।
विशेष प्रकाशन सं. 2*(1989): भारतीय जल में मछली स्टॉक निर्धारण पर अध्ययन
पर्ची -1 भारत के उत्तर-पश्चिम तट में आबादीय गतिकी एवं ट्रिचियूरुस लेप्टूरस लिन्नेइयस का स्टॉक निर्धारण
वी एस सोमवंशी एवं एन्टनी जॉसफउत्तर-पश्चिमी तट के समीप मछली अवतरणों के प्रमुख घटक रिब्बन फिश रही । जनसंख्या पर अध्ययन का परिणाम वर्ष 1977 में पोत एम टी मुरैना द्वारा संचालित सर्वेक्षण में संग्रहित सामग्री के आधार पर ट्रिचियूरुस लेप्टूरुस लिन्नेइयस का स्टॉक निर्धारण एवं प्राचल प्रस्तुत किया है । विश्लेषण से वृद्धि प्राचल लू को 109 सेमी एवं के को 0.64 के रुप में प्रजातियों के लिए आकलित तात्कालिक नैसर्गिक मार्त्यता गुणांक एम तथा कुल मार्त्यता गुणांक जेड क्रमशः 0.8 तथा 2.16 रहा । प्रजातियों के पकड़ प्रति यूनिट प्रयत्न पर भौगोलिक, बेथिमेट्रिकल तथा मौसमी प्रभाव जानने के लिए किए गए अन्तर का विश्लेषण सूचित करता है कि मौसमी प्रभाव जानने के लिए किए गए अन्तर का विश्लेषण सूचित करता है कि मौसमी द्वारा प्रचुरता प्रभावित नही है और इसका अध्ययन तीन स्थानिक प्रभाग अर्थात (1) अक्षांश 15-18 उ(2) अक्षांश 19-27 20 उ एवं (3) अक्षांश 21-23 उ द्वारा किया जाना है, तथा 50-100 मी. तथा 100-200 मी गहराई क्षेत्र के लिए अलग किया जाना है । उत्तर पश्चिम तट के लिए निर्धारित रिब्बन फिश का जैव मात्रा एवं एम एस वाई क्रमशः 156 हजार टन तथा 70 हजार टन है ।
पर्ची -2. भारतीय समुद्र में येल्लो फिन टूना थुन्नस अलबकेरस (बोन्नाटरे) की आबादीय गतिकी पर विचार ।
एम ई जॉन एवं के एस एन रेड्डी
लाँग लाइन सर्वेक्षण में संग्रहित आँकड़े पर भारतीय समुद्र में येलो फिन टूना, थुन्नस अलबकेरस की आबादीय गतिकी पर अध्ययन का परिणाम इस पर्ची में प्रस्तुत है । 1983-88 के दौरान भारतीय अनन्य आर्थिक क्षेत्र एवं समीपस्थ क्षेत्र के महासागरीय जल का सर्वेक्षण किया गया । येल्लो फिन टूना का लम्बाई वजन संबंध को डब्ल्यू = 0.000049557 एल 2.8055 के रुप में निर्धारित किया है । प्राप्त वॉन बेरट्लनफी प्राचल लू = 175 सेमी तथा के 0.29 है । नैसर्गित मार्त्यता गुणांक 0.74 के रुप में आकलित किया है । आँकड़ा नियंत्रण को देखते हुए परिणाम को प्रारंभिक समझा है ।
पर्ची -3. भारत के उत्तर पश्चिमी तट से दूर प्रियाकेन्थस हेमरुर (फोरस्कल) की जैवमात्रा एवं अधिकतम संपोषित उपज, स्टॉक घनत्व का आकलन
आर एस बिरादर
1984-1987 के दौरान 3 गहराई स्तर अर्थात 50 मी. से कम, 50-100 मी. 100-200 मी को सम्मिलित कर भारत के उत्तर पश्चिम तट से दूर अक्षांश 15 0 उ से 22 उ के बीच बोट्टम ट्रॉल सर्वेक्षण किया गया । विविध गहराई क्षेत्र 50 मी. गहराई से कम की तुलना में अधिक उत्पादक है । अक्टूबर से दिसबंर के दौरान स्टॉक घनत्व उच्च रहा तथा जुलाई से सितम्बर के दौरान निम्नतम रहा । प्रति वर्ष 25,000 टन अधिकतम संपोषित उपज के साथ पी हेमरुर का कुल जैविक मात्रा 88.560 टन आकलित किया था । मानसून (जुलाई-सितम्बर) के दौरान स्टॉक घनत्व तथा प्रजातियों से मिलन का अवसर कम थे । यह स्टॉक के संभाव्य चाल या देशांतरण का संकेत करता है । प्राचल के संबंध में स्टॉक का वितरण समय स्थान से अधिक चाल या देशांतरण की परिकल्पना पर आगे प्रकाश डालेंगे ।
पर्ची - 4* वेड्ज बैंक में कटल फिश, सेपिया फेरोनिस (एहरेनबर्ग) आबादीय गतिकी तथा स्टॉक निर्धारण
के पी फिलिप एवं डी एम अलीइस शोध पर्ची में भा. मा. स. द्वारा संचालित ट्रॉल सर्वेक्षण के आधार पर वेड्ज बैंक में एस फराओनिस के आबादीय प्राचल एवं स्टॉक साइज का आकलन करने का प्रयास किया है । वोन बेरटनलफी प्लोट का प्रयोग कर लू और के को 37.0 सेमी एवं 0.5 वर्ष-1 के रुप में परिकलित किया है कुल मृत्युदर जेड को 1.1 आकलित किया है। इस क्षेत्र से एस फरोनिस का कुल जैविक मात्रा 2060 टन आकलित किया है ।
पर्ची -5* भारत के पूर्वी तट पर काकिनाड़ा एवं वाल्टेयर से मलूबार ट्रेवल्ली, केरनगोइड्स मलबारिकस (ब्लोच और श्चनेइडर) नमूनों की जीवसाख्यिकी तुलना
ए शमीमभारत के पूर्वी तट पर काकिनाडा एवं वाल्टेयर से मलबार ट्रेवल्ली, केरनगोइड्स मलबारिकस के नमूने खण्डों के लक्षण एवं शरीर के खंडों के लक्षण के लिए ची- वर्ग परीक्ष का प्रयोग कर मोरफोमेट्रिक चरित्र के लिए बहुचर विश्लेषण से तुलना की जाती है । छह शरीर के खण्डों के लक्षण तथा छह शरीर मापन का विश्लेषण किए गए ।
पर्ची -6* 1981-1982 तथा 1986-1987 के दौरान इ एफ एफ इनपुट एवं विवरीणी के संदर्भ के साथ कोच्चि से दूर ड्रिफ्ट गिल नेट मात्स्यिकी में झुकावः भारतीय जल में फिश स्टॉक निर्धारण पर अध्ययन
ए ए जयप्रकाश
इस शोध पर्ची में कोच्चिन में 1981 से 1987 तक ड्रिफ्ट गिलनेट मात्स्यिकी का विवरण प्रस्तुत किया है। वार्षिक पकड़/प्रयत्न 1982 से 1987 तक 93 किग्रा से 176 किग्रा उच्चस्थ की ओर उन्मुख दर्शाता है । 1981-87 के मात्स्यिकी में योगदान की गई मुख्य मछलियों का समूह टूना तथा बिल फिश (37.8%), सीर फिश (19.1%), इलास्माब्रान्चस(4.4%), केट फिश (13.4%) केरेन्गिड (5.5%) पोमफ्रेट (5.3% 8 तथा मैकरेल (1.6%) रही ।
पर्ची -7* मार्च सितम्बर के दौरान अक्षांश 11-16 उ के बीच भारत के पश्चिम तट के समीप प्रियकेन्थस हेमरुर (फोरस्कल) का स्टाल अध्ययन
के विजय कुमारन तथा एस के नाइकदुर्बल मत्स्यन ऋतु के दौरान अशांक्ष एवं विविध गहराई क्षेत्र के संबंध में स्टेटग्राफिक्स का प्रयोग कर प्रचुरता का विश्लेषण करने का प्रयास इस पर्ची में किया है । औसतन पकड़ दर के बीच कोई महत्वपूर्ण व्यतियान मार्च और सितम्बर के लिए नहीं अवलोकन किया गया जिससे यह सूचित होता है कि यह एकल स्टॉक मात्स्यिकी है मार्च एवं सितम्बर माह के लिए कुल आकलित जैवमात्रा 2414.59 टन एवं 27598.52 है ।
पर्ची - 8. विशाखापट्टणम बंदरगाह के प्रदूषित जल में मुल्लेट की निकृष्ट स्थिति
बी राम भास्कर, के श्रीनिवास रा, डी पाण्डुरंग राव तथा वाई वी के दुर्गा प्रसादविशाखापट्टणम भीतरी बंदरगाह (प्रदूषित स्थान) तथा गोस्तानी ज्वार मुहाना, भीमिलिपटनम (नियंत्रण स्थान) से मुल्लेट (म्युजिल सेफलु तथा लिजा मेक्रालेपिस) का तुलनात्मक लम्बाई समूह का अवस्था कारक (क्यू) का आकलन किया गया । गोस्तानी जवार मुहाना की मुल्लेट से बंदरगाह जल की मुल्लेट के मामले में अवस्था कारक बहुत कम पाया गया है । इन एल (लम्बाई समूह) का मध्य बिन्दु के अनुकूल सहित इन डब्ल्यू (इन अर्थात वजन) के परिवर्तन का विश्लेषण उप विचलन के रुप में दोनों जल के मुल्लेट के बीच महत्वपूर्ण व्यतियान दर्शाया है । बंदरगाह जल से मछलियों का निम्न अवस्था कारक जो कि जल में भारी धातु, तेल एवं ग्रीस के उच्च संकेन्द्रण के कारण मछलियों की तन्दुरुती पर प्रभाव पडता है ।
पर्ची -9* हुगली मटलाट ज्वार मुहान तंत्र में हिल्सा इलिषा (हेम बुच) का गिल जाल चयनात्मता
एस के मण्डल
चयन का प्रभाव वर्णन करने हेतु आंकडा पर लगा दो चयन वक्र के एक परिकल्पनात्मक उदाहरण अध्ययन में प्रस्तुत किया है ।
पर्ची - 10. भारत के उत्तर पश्चिम तट के समीप मेगालसिपस कोरडिला के पेलाजिक स्टॉक निर्धारण में स्वेप्ट आयतन प्रणाली का प्रयोग
एन्टनी जोसेफ एवं वी एस सोमवंशी
इस शोध पर्ची में 1977 में उत्तर पश्चिम तट के समीप पोत एम टी मुरैना के छह समुद्र यात्रा क्रूस के दौरान संग्रहित हॉर्स मैकरेल, मेगलासपिस कोराडिला पर आँकड़े का विस्तुत विश्लेषण प्रस्तुत किया है । परिणाम इस पेलाजिक प्रजातियों के कुछ व्यवहारात्मक चरित्र सूचित करता है । (1) 200 मी. गहराई तक अधस्तल परत में बडे समूह में होता है। (2) रात के दौरान उच्च घनत्व में झुण्ड (3) 000-4000 घंटे के दौरान पेलाजिक ट्रॉल में अतिसंवेदनशील झुण्ड का संचय । जनवरी-मार्च के दौरान प्रजातियाँ प्रचुरता में पाई गई । पेलाजिक स्टॉक का निर्धारण के लिए स्वेप्ट आयतन द्वारा जैव मात्रा का निर्धारण का एक नया परिवेश का सुझाव दिया है । इस प्रणाली में ध्वनिक के साथ पेलाजिक ट्रॉल सर्वेक्षण निवेश होगा । पकड़ गुणांक, में विभन्नता, झुण्ड में रहने की आदत तथा छोटे पेलाजिक का प्रवसन के कारण इस प्रणाली का सीमा निर्धारण पर चर्चा की है ।
विशेष प्रकाशन सं. 3 (1992): भारतीय सागर में टूना मात्स्यिकी पर ग्रन्थ विज्ञान
एम ई जॉन एवं ए के भार्गव
टूना एवं टूना जैसे संसाधन भारतीय सागर में शोषण के लिए उपलब्ध संभाव्य संसाधन है । इस प्रकाशन में अनुसंधानकर्ताओं के हित के लिए भारत में प्रकाशित टूना पर वैज्ञानिक शोध कागज़ात एवं अन्य प्रलेखों का संकलन किया है । मात्स्यिकी, जीव विज्ञान, जनसंख्या गातिकी, समन्वेषी सर्वेक्षण, वाणिज्यिक मत्स्यन टूना मात्स्यिकी के वितरण एवं विकास संभावनाओं पर संदर्भ इसमें सम्मिलित किया है ।
विशेष प्रकाशन सं. 4 भा. मा. स. प्रकाशनों पर ग्रन्थ विज्ञान (अक्तूबर 1998)
विशेष प्रकाशन सं. 5 भा. मा. स. प्रकाशन पर सार (मई 2000)
3) प्रासंगिक कागज़ातः विविध अनुसंधान कार्यकलपों से संबंधित कुल 10 प्रासंगिक कागजात प्रकाशित किए गए । |
प्रासंगिक कागजात 1* (1986): रेइनबो के बडे दल के स्थान पर केप कोमेरिन से दूर रन्नर इलागटिस बिपिन्नुलाटा (केरेन्गिडे)
टी ई सिवप्रकासम एवं जी नागराजन
फरवरी 1985 में सर्वेक्षण क्रूस के दौरान भा.मा.स. का पर्स सीनिंग पोत मत्स्य वर्षिनी ने रेइनबों रन्नर, इलागटिस विपिन्नुलाटा के बडे दल का पता लगाया है । 7-77 क्षेत्र में किए गए सफल हॉल से कुल पकड़ 10.7 टन प्राप्त हुआ जिसमें इ विपिन्नुलाटा की गणना 7 टन है । इस प्रजातियों की उपस्थिति का महत्व है क्योंकि ऐसे बड़े दल का पहल रिकार्ड नहीं की गई थी । गरम तटवर्ती जल में 50-60 मी गहराई तक यह प्रजातियाँ प्राप्त होती है तथा लगभग 4 फुट लम्बाई तक वृद्धि होती है । इन प्रजातियों के लिए मुख्य मत्स्यन प्रणालियों हुक एवं लाइन, गिल जाल एवं सीन जाल है ।
प्रासंगिक कागजात 2* (1986): उडीसा एवं पश्चिम बंगाल तट से दूर मैकरेल के लिए संभाव्य ट्रॉल मात्स्यिकी
टी ई सिवप्रकासमतेल सारडीन के बाद, भारतीय मैकरेल, रास्ट्रेल्लिजर कानागुरटा (कुवियर) भारत में सब से प्रमुख मात्स्यिकी है । प्रस्तुत पर्ची में, पोत मत्स्य दर्शिनी द्वारा वर्ष 1985 के दौरान बोट्टम ट्रॉल सर्वेक्षण से प्राप्त उड़ीसा- पश्चिम बंगाल तट के समीप मैकरेल संसाधन पर कुछ रोचक अवलोकन का विश्लेषण किया है एवं प्रस्तुत किया है । इस अवधि के दौरान पोत द्वारा प्राप्त पकड़ 145 टन है । जिसमें मैकरेल का प्रतिशत 56 है । प्रजातियों के प्रचुरता में वितरण पद्धति एवं मौसमी व्यतिपात की प्रचुरता की चर्चा की है । गहराई तौर पर 101-150 मी गहराई क्षेत्र से उच्चतम पकड 201 .2 किग्रा प्रति घंटा प्राप्त हुआ इसके बाद यूनिट प्रयत्न 51-100 मी. क्षेत्र से 94.1 किगा. प्रति घंटा पकड दर प्राप्त हुई । परिणाम यह दर्शाता है कि तटवर्ती बेल्ट से अपतट/गहन समुद्र जल से मैकरेल संसाधन भरपूर है । उड़ीसा-पश्चिम बंगाल तट के समीप ट्रॉल पकड़ में मैकरेल की प्राप्ति पर्याप्त मात्रा में क्षेत्र से मैकरेल के लिए संभाव्य ट्रॉल मात्स्यिकी की अस्तित्व की पूर्व सूचना देती है ।
प्रासंगिक कागजात 3* (1987): 1985-86 के दौरान दक्षिण पश्चिम तट से दूर अरब सागर में संचालित समन्वेषी टूना लाँग लाइन सर्वेक्षण का परिणाम
टी ई सिवप्रकासम एवं एस एम पाटीलइस शोध पर्ची में पोत मत्स्य सुगन्धी द्वारा मई 1985 से मार्च 1986 की अवधि के दौरान टूना लाँग लाइन सर्वेक्षण में प्राप्त भारत के दक्षिण-पश्चिम तट से दूर टूना एवं टूना जैसी मछलियों का वितरण एवं प्रचुरता पर सूचना प्रस्तुत की है । पश्चिम तट के समीप अक्षांश 5 से 14 उ तक का ईईझेड(EEZ) क्षेत्र में सर्वेक्षण पूरा किया है । कुल हूकिंग दर 0.4% से 23.09% के बीच भिन्न रही । टूना सबसे प्रमुख घटक रही (75%) इसके बाद शार्क एवं बिल फिश रही । इसके बाद शार्क एवं बिल फिश रही । टूना की तीन प्रजातियाँ प्राप्त हुई जिसमें येलो फिन टूना 99% की सीमा तक पकड में प्रमुख रही । पूरे वर्ष के लिए 6.09% औसत के साथ टूना की हूकिंग दर 0.16% से 20.81% तक भिन्न रही । अनन्य आर्थिक क्षेत्र के अंतर्गत कर्नाटक तट से दूर उच्च पकड दर प्राप्त हुई । अध्ययन से प्रकट होता है कि टूना का उत्तरी प्रवसन निम्न अक्षांश से उच्च अक्षांश तक अक्टूबर में शुरु होता है एवं मार्च तक रहता है । भारत में टूना मात्स्यिकी का विकास की संभावना भी इस शोध पर्ची में चर्चा की है ।
प्रासंगिक कागजात 4* (1986): गहन समुद्र में क्या भंड़ार है? भारतीय अनन्य आर्थिक क्षेत्र के तलमज्जी मात्स्यिकी संसाधन में समन्वेषण का परिणाम
टी ई सिवप्रकासम
गैर शीर्षक प्रलेख 1979-86 के दौरान भा मा. स. के बडे पोतों द्वारा समन्वषी सर्वेक्षण में यह व्यक्त हुआ है, कि भारतीय अनन्य आर्थिक क्षेत्र में 500 मी गहराई तक तलमज्जी मात्स्यिकी संसाधनों का संक्षिप्त अवलोकन, इस शोध पत्र में चर्चा की है । विविध गहराई क्षेत्र एवं अक्षांश में प्राप्त संसाधनों का सापेक्ष प्रचुरता के संदर्भ में तथा राज्य के तौर पर प्रत्येक गहराई क्षेत्र में प्रमुख प्रजातियों का प्रतिशत संयोजन इस सूचना में प्रस्तुत किया है। उपलब्ध संसाधनों का प्रकार, उपलब्धता क्षेत्र तथा प्रचुरता की गहराई क्षेत्र का भी पहचान किया गया । 70 मी. गहराई से दूर गहन समु्द्र में मुख्य संसाधन थ्रेड फिन ब्रीम्स, बुल्स आई, ब्लेक रफ, ड्रिफ्ट फिश, स्कड, ग्रीन आई, हार्स मैकरेल, मैकरेल, रिब्बन फिश, बाराकुडा, लिजार्ड फिश, स्क्विड एव कटल फिश, गहन समु्द्र शार्क एवं केकडा है। यह निर्णय लिया गया कि गहन समुद्री संसाधनों का आर्थिक सक्षमता का प्रयोग की जाँच करानी है । फिलहाल, बढती हुई माँग तथा तटवर्ती संसाधनों का अधिकतम उपयोग के साथ हमें भविष्य में गहन समुद्री संसाधनों से लाभ उठाना है ।
प्रासंगिक कागजात 5* (1988): भारत के पूर्वी तट से दूर प्रकाश आकर्षण के साथ पर्स- सीनिंग प्रयोग
टी वी नैनान एवं डी सुदर्शनपेलाजिक मछलियों का आकर्षण एवं संकेन्द्रण कृत्रिम प्रकाश द्वारा संसार के विविध भागों में कार्यान्वित किया जाता है । विविध कारक जैसे सकारात्मक फोटोटेक्सिस, अनुकूलतम प्रकाश तीव्रता के लिए प्राथमिकता, अन्वेषक प्रतिक्रिया, रक्षात्मक प्रतिक्रिया आदि मछली एकत्रीकरण में योगदान किया है । भा. मा. स. के ट्रॉलर कम पर्स-सीनिंग पोत, मत्स्य दर्शिनी पर संचालित प्रकाश से आकर्षित पर्स सीनिंग में मछली का इस व्यवहार का शोषण किया है एवं इसका परिणाम इस शोध पर्ची में प्रस्तुत किया है । यह अवलोकन किया गया है कि क्षेत्र जहाँ आविलता अधिक था एवं प्रवाह कठोर था वहाँ मछलियाँ आकर्षित थी । यह संकेत था कि बडी मछलियाँ जैसे सीर फिश, स्किपजेक टूना आदि प्रकाश द्वारा सीधा आकर्षित नही थी लेकिन प्रकाश द्वारा आकर्षित छोटी मछलियाँ जैसे सारडीन एवं एन्कोविस समूह खाने की ओर आकर्षित थी ।
प्रासंगिक कागजात 6* (1991): अण्डमान समुद्र में स्पियर लॉब्स्टर, लिनुपारस सोमनिओसस, बेरि एवं जार्ज,1972 (कुटुम्ब पालिनूरिडे)
डी एम अली, पी पी पान्डियन, वी एस सोमवंशी, एम ई जॉन तथा के एस एन रेड्डीस्पियर लॉब्स्टर लिनुपारस सोमनिओसस पूर्व अफ्रीकी तट से दूर प्राप्त होने के लिए ज्ञात है । इस शोध पर्ची में भारतीय जल में इस प्रजातियों की प्रथम रिकार्ड रिपोर्ट की है । भा. मा. स. का सर्वेक्षण पोत मत्स्य शिकारी अण्डमान समुद्र में अपनी प्रथम समुद्री यात्रा के दौरान 9.10.1990 को संसाधन का पता लगाया । मार्च-अप्रैल 1991 के दौरान दूसरे क्रूस में इन प्रजातियों को फिर पकड़ा । दो समुद्री यात्रा के दौरान अवलोकित वितरण क्षेत्र अक्षांश 11 40' उ से 13 10' उ तथा देशांतर 9293' पूर्व से 9308' पूर्व के बीच पूर्वी अण्डमान समुद्र में 279-360 मी गहराई क्षेत्र में है । हॉल का तौर पर प्राप्त पकड़ प्रति यूनिट प्रयत्न 0.54 से 4.83 किग्रा प्रति घंटे के आसपास रहा । जैविक अध्ययन दर्शाता है कि कुल शरीर की लम्बाई 16-42 सेमी के आसपास थी । औसतन वजन 351 ग्राम एवं अधिकतम वजन 1010 ग्राम था । नर के लिए मादा अनुपात 60.7:39.3 पाया गया । लम्बाई-वजन संबंध डब्ल्यू = 0.0449 एल 2.6877 के रुप में आकलित किया गया । लम्बाई आवृत्ति अध्ययन चार घटक के साथ बहु मॉडल वितरण पद्धति का संकेत करता है अण्डमान एवं निकोबार जल में स्टॉक का वाणिज्यिक उपयोजन की संभावनाओं की भी चर्चा शोध पर्ची में की है ।
प्रासंगिक कागजात 7* (1994): चार्टीकृत विदेशी मत्स्यन पोत प्रचालन द्वारा प्रकटित भारत के दक्षिण पश्चिम तट के समीप गहन समुद्र श्रिम्प के वितरण एवं प्रचुरता पर कुछ अवलोकन
ए के भार्गव, एम ई जॉन एवं वी रानेगहन समुद्री श्रिम्प का लक्ष्य पर ध्यान रखते हुए दक्षिण पश्चिम तट के समीप कुछ चार्टीकृत स्टर्न ट्रॉल का प्रचालन से स्टॉक का प्रचुरता एवं वितरण पर अमूल्य सूचना प्राप्त हुई है । 1990-94 की अवधि के दौरान दो इटालियन पोत एवं एक स्पेनिश पोत द्वारा किए गए मत्स्यन का परिणाम की चर्चा की है । गहन समुद्री श्रिम्प की बड़ी संख्या में प्रजातियाँ पिनाइडे कुटुम्ब एवं पांडलिडे कुटुम्ब की है, और यह दक्षिण-पश्चिम तट से दूर प्राप्त होती है । इस पर्ची में वाणिज्यिक प्रमुख प्रजातियों की सूची दी है । यह अवलोकन किया गया कि 340-430 मी गहराई क्षेत्र में आलेप्पि एवं पोन्नानी से दूर अक्षांश 9 उ एवं 10 उ में दो भिन्न मत्स्यन स्थल में मुख्य रुप से चार्टीकृत पोतें प्रचालित थे । मत्स्यन पद्धति एवं स्टॉक वितरण का वर्णन किया है । प्राप्त मीन पकड़ प्रति यूनिट 852.7 किग्रा. प्रति मत्स्यन दिवस या 50.1 किग्रा प्रति मत्स्यन घंटा रहा । माहवार पकड प्रति यूनिट प्रयत्न कोई महत्वपूर्ण परिणाम का मौसम का संकेत नही किया है, और वर्ष भर मत्स्यन व्यवहार्यता का सुझाव देता है । दूरस्थ देशों से पोतों द्वारा सफल प्रचालन, शोषण का आर्थिक सक्षमता का सूचक है । फिलहाल गहन समुद्री श्रिम्प की मन्द वृद्धि एवं उच्च मृत्यु दर को देखते हुए दीर्घकालीन शोषण के लिए सावधान मार्ग की आवश्यकता है ।
प्रासंगिक कागजात 8* (1995): अरब सागर एवं बंगाल की खाड़ी से ब्रामिड गहन समुद्र महासागरीय पोमफ्रेट, ताराक्टिचिथिस लॉन्गिपिन्निस (लॉव, 1843) तथा ताराक्टस रुबेस्सेन्स (जोरडन एवं एवरमेन 1887) का दो नए रिकार्ड
के एन वी नायर, वी सिवाजी एवं वी एस सोमवंशी
भारत के उत्तर पश्चिम तट के समीप महासागरीय संसाधनों के सर्वेक्षण करने के लिए टूना लाँग लाइन पोत ब्लू मार्लिन के सर्वेक्षण क्रूस के दौरान किए गए सर्वेक्षण से पोरबंदर से दूर 2375 मी गहराई में अक्षांश 2235' उ एवं देशांतर 6714' पू क्षेत्र से ताराक्टिचिथिस लाँन्गिपिन्निस का एक नमूना 22-1-1990 को हूक किया गया । दूसरी प्रजाति तारक्टिस रुबेस्सेन्स छोटे अण्डमान से दूर 2245मी गहराई में 19-12-1991 को रिकार्ड की गई । इस शोध पर्ची में, इन प्रजातियों के विवरण, समानार्थी एवं वितरण ढाँचा के आर्थिक महत्व के साथ चर्चा की गई है ।
प्रासंगिक कागजात 9* (1996): भारतीय अनन्य आर्थिक क्षेत्र के उत्तर पश्चिम से पकड़ी गई सन फिश (कुटुम्बः मोलिडे)
वी एस सोमवंशी, एस वर्गीस, आर के गुप्ता एवं वी वी नाईक
विश्व महासागर के उष्ण कटिबंधीय एवं शीतोष्ण भाग में फैली हुई सन फिश भारतीय तट के समीप विरल प्राप्त होती है । भारतीय जल से रिपोर्ट की गई प्रजातियाँ रानजानिया ट्रन्काटा, आर टिपस, मस्तूरस इयानसियोलेटस, एम ओक्सियूरोप्टेरस और मोला मोला है । भारतीय मात्स्यिकी सर्वेक्षण का पोत येल्लो फिन भारत के उत्तर पश्चिम तट के समीप अपने लाँग लाइन प्रचालन के दौरान मई, अक्टूबर एवं नवम्बर 1992 में अक्षांश 19-22 के समीप 1152 से 1937 मी तल गहराई क्षेत्र से मोला मोला प्रजातियों की 8 नमूने एवं एम लेनसिओलेटस का एक नमूना हूक किया गया । इसकी की समीक्षा दर्शाती है कि सन फिश के जैविक पहलुएं विशेषकर पुनरुत्पादन तरीका एवं प्रजनन का स्थान का बहुत सीमित सूचना उपलब्ध है । वर्तमान जाँए के दौरान निरीक्षण किए गए सभी पाँच नमूने नर थे जिसका अपरिपक्व एवं परिपक्व जननग्रंथि था । उनके आहारी आचरण पर सूचना दर्शाती है कि वे आहार की अचयनित प्रकृति को सूचित करते हुए जेल्लि फिश से समुद्री घास-पात तक विविध प्रकार के खाद्य पदार्थ खाती है । सन फिश वाणिज्यिक प्रमुख नहीं है, क्योंकि उसके मांस पक्का, अस्वादिष्ट, फीका होने के कारण प्रिय आहार के रुप में नहीं माना जाता है । जापान में महासागरीय सनफिश एम मोला का यकृत तत्व मानव आमाशय व्रण के चिकित्सा हेतु कच्चा उपचार के रुप में प्रयोग किया गया है । सनफिश महाद्वीपीय छज्जा में बहुत विरल प्रवेश करती है । पूर्व में पकडे गए नमूने प्रासंगिक पकड या तट के समीप बहकर अवतरित हुआ होगा । सनफिश का दृश्य से अनेक पौराणिक एवं किवदंतियाँ जुडी है । हाल ही के अनुसंधान अध्ययन दर्शाता है कि ग्रीन सन फिश को समुद्र में अंधकारमय स्थिति में देखने की निपुणता है । वर्तमान अध्ययन सन फिश के संबंध में उसका सामान्य वितरण, जाति विकास, जीन्स एवं वंश की सूची, जैविक पहलुएं, आकृति ज्यामिति मापन, शरीर के खंडों या भागों संबंधित गणना, आहार एवं जनन ग्रंथि अवस्था सहित सूचना का विस्तुत विवरण प्रदान करता है।
कार्यवाहियाँ :
भारत में टूना अनुसंधान (1993)
डी सुदर्शन एवं एम ई जॉनमात्स्यिकी विकास के लिए क्षेत्र में संसाधनों को जानने, अद्यतन करने एवं संक्षिप्त करने एवं वैज्ञानिक प्रमाण का स्टॉक लेना पूर्वापेक्षित है । भारतीय समुद्र में टूना मात्स्यिकी के विकास की दिशा में एक कदम के रुप में भारत में टूना अनुसंधान में सम्मिलित विशेषज्ञों का एक परिसंवाद 1992 के दौरान आयोजित किया गया । परिसंवाद, अनुसंधान आवश्यकताओं को पहचानने हेतु वैज्ञानिकों का अन्योन्य क्रिया को आगे बढ़ाया एवं भविष्य के लिए अनुसंधान कार्य के कार्यक्रम की रुपरेखा प्रस्तुत किया । परिसंवाद में चर्चा के उपरान्त शोध पर्चियों की समीक्षा की गई । इस खंड में इन शोध पर्चियों को अंतिम फार्म में प्रस्तुत किया है । इस प्रकाशन में सम्मिलित शोध पर्ची निम्न हैः
पर्ची-1: भारत में टूना अनुसंधानः वर्तमान स्थिति एवं भविष्य मार्ग - डी सुदर्शन
पर्ची-2: भारतीय समुद्र से तटवर्ती मात्स्यिकी में प्राप्त येलो फिन टूना की मात्स्यिकी एवं जीव विज्ञान गैर शीर्षक प्रलेख - पी पी पिल्लै, के पी सइद कोया, एन जी के पिल्लई तथा ए ए जयप्रकाश
पर्ची-3: भारतीय समुद्र में प्राप्त येलो फिन टूना की मात्स्यिकी एवं जीव विज्ञान - एम ई जॉन एवं डी सुदर्शन
पर्ची-4: भारतीय समुद्र में लाँग लाइन सर्वेक्षण में अवलोकित येलो फिन टूना का घनत्व इन्डाइसेस - एम ई जॉन
पर्ची-5: भारतीय समुद्र में स्क्पिजेक टूना की मात्स्यिकी, जीव विज्ञान एवं स्टॉक निर्धारण - टी एम योहन्नान, पी पी पिल्लै तथा के पी सइद कोया
पर्ची-6: भारत के चारों ओर समुद्र में बिगआई टूना - एम ई जॉन एवं डी सुदर्शन
पर्ची-7: छोटी टूना की मात्स्यिकी, जीव विज्ञान एवं स्टॉक निर्धारण - पी एस बी आर जेइम्स, जी गोपकुमार, मोहम्मद कासिम, एम शिवदास एवं के पी सईद कोया
पर्ची-8: तटवर्ती टूना पर मात्स्यिकी पर पर्यावरणिक उतार-चढाव का प्रभाव - एम एस राजगोपालन, पी एस बी आर जेइम्स तथा एन जी के पिल्लै
पर्ची-9: भारतीय जल में टूना मत्स्यन के लिए उपग्रह सुदूर संवेदन - बीना कुमारी, मिनी रामन, ए नाराइन तथा टी ई सिवप्रकासम
पर्ची-10: भारतीय अनन्य आर्थिक क्षेत्र में तापमान रुपरेखा में स्थानिक एवं मौसमी उतार चढाव का स्वरुप तथा टूना मत्स्यन पर इसका प्रभाव - के एन वी नायर तथा पी एम मुरलीधरन
पर्ची-11: 1990 के दौरान मालद्वीप में संचालित टूना टैगिंग कार्यक्रम का परिणाम - एम येसाकी एवं ए वहीद
तकनीकी प्रतिवेदन
तकनीकी प्रतिवेदन - सेक/आर एस ए /आर एस ए जी /एम डब्ल्यू आर डी/टी आर/10/92 मई 1992 - समुद्री मात्स्यिकी का सुदूर संवेदनः कला एवं भारतीय अनुभव - ए नाराइन, बीना कुमार, एच वी सोलंकी, आर एम द्विवेदी, नीरा चतुर्वेदी तथा मिनी रामन (अंतरिक्ष उपयोग केन्द्र), डी सुदर्शन, टी ई सिवप्रकासम तथा एम ई जॉन (भारतीय मात्स्यिकी सर्वेक्षण)
संसाधन सर्वेक्षण एवं उपयोजन के लिए अनेक देशों में प्रचालन आधार पर समुद्री मात्स्य़िकी में सुदूर संवेदन तकनीक का व्यापक रुप से प्रयोग किया गया है । भारत में समुद्री मात्स्यिकी में सुदूर संवेदन का प्रयोग पर अध्ययन, 1979-1984 के दौरान एक संयुक्त प्रयोग कार्यक्रम के रुप में इसरो, सी एम एफ आर आई तथा भा. मा. स. द्वारा सहयोगी प्रयास के साथ शुरु किया था ।
इस अध्ययन अंतिम रुप में एन ओ ए ए ए वी एच आर आर सेन्सर से एस एस टी आँकड़े के आधार पर संभाव्य मत्स्यन क्षेत्र (पी एफ जेड) पूर्वानुमान के उत्पादन स्तर पर पहुँचा है ।
इस रिपोर्ट का उद्देश्य सुदूर संवेदन क्षेत्र का परिचय देने के अतिरिक्त, मात्स्यिकी पूर्वानुमान में क्रियाविधि का वर्णन करता है । मात्स्यिकी संसाधनों में समुद्र सतह तापमान का प्रयोग संबंधी लक्षण पर विशेष मामला अध्ययन को भी प्रस्तुत किया गया है ।
भा. मा. स. प्रकाशन का विशेष प्रकाशन सं.5 : ए के भार्गव तथा जे सी दास - मई 2000
प्रकाशक- डॉ. वी एस सोमवंशी, भारतीय मात्स्यिकी सर्वेक्षण
भा मा स के प्रकाशन
भारतीय मात्स्यिकी सर्वेक्षण, भारत सरकार, बोटावाला चैम्बर्स, सर पी एम रोड, मुम्बई-400 001.
फैक्स/Fax: 022-22702270, फोन/Phone:22617144/45
ई मेंल/E. mail: dg-fsi-mah@nic.in / fsihqm@eth.net
वेबसाइट/Website: http:/www.fsi.gov.in
प्रासंगिक कागजात 10: उत्तर पश्चिम भारतीय अनन्य आर्थिक क्षेत्र से किंग फिश रेचि सेन्ट्रोन केन्डन (लिन्नेयस ,1766 का कुछ जैविक पहलुएँ (अगस्त 200)
- वी एस सोमवंशी, एस वर्गीस, डी के. गुलाटी एवं ए के भार्गव
किंग फिश रोचिसेन्ट्रोन केन्डाम लिन्नेयस, (1766) पेसिफिक,अटलांटिक एवं हिन्द महासागर के उष्ण कटिबंधीय उष्ण जल में फैला है । इस अध्ययन में उत्तर पश्चिम भारतीय अनन्य आर्थिक क्षेत्र से किंग फिश का जैविक पहलुएं किया गया । पहलुओं में आहार एवं आहारी, परिपक्वता, अण्डजनन, जनन-क्षमता, लिंगानुपात एवं वृद्धि प्राचल शामिल है । किंग फिश का आहार उसके उदर वस्तुओं से प्रकट होता है कि वे मुख्यतः फिन फिश एवं सेफेलोपोड्स खाती है । पहचान की गई फिन फिश में बाराकुडा (स्फाइरिना ओबटुसाटा) बुल्स आई (प्रियाकेन्थस हेमरुर), स्कड (डीकेप्टचरिड्स रस्सेली तथा ईल (कोन्ग्रेसोक्स टेलाबोन) सम्मिलित है । नर एवं मादा किंग फिश के आहारों की तुलना में कोई महत्वपूर्ण परिवर्तन नहीं देखा गया तथा दोनों मामले में मुख्य खाद्य पदार्थ में पफर फिश शामिल है । किंग फिश की परिपक्वता एवं अण्डजनन पर अध्ययन दर्शाता है कि अंडाशय के विविध भागों में अंडाणु का वितरण एक समान है तथा विकसित अंडाणु का चरम काल छोटा है एवं अण्डजनन अवधि निश्चित है। पूर्ण जनन क्षमता 19,55,264 अनुमानित की है जबकि प्रति ग्राम अंडाणु की संख्या के संदर्भ में अंडाशय का वजन 2334 है तथा अंडाणु की संख्या प्रति ग्राम शरीर वजन 100 है । नर किंग फिश के लिए मादा का लिंगानुपात 1:1.5 है । नर के लिए लम्बाई-वजन संबंध डब्ल्यू = 0.0096 एलं 2.8774 तथा मादाः डब्ल्यू = 0.0036 एल 3.1603 परिकलित किया है । अनुमानित वृद्धि प्राचल का मूल्य लू = 135.16 से मी एवं के = 0.17 प्रति वर्ष है । प्रजातियों के लिए परिकलित प्राकृतिक मार्त्यता (एम) 0.36 है । तीन प्रमुख महासागर में उनके व्यापक वितरण क्षेत्र में फैला हुआ अनेक स्थानों से किंग फिश विविध मात्रा में पकडी जा रही है, यह अनिवार्य है कि तटवर्ती देशों में सरकारी अनुसंधान प्रयास, इन निर्णायक प्रजातियों के लिए जीव विज्ञान एवं मात्स्यिकी का निर्णायक पहलुओं पर केन्द्रित है ।
प्रासंगिक कागजात* 11: भारत के वितरण प्रचुरता एवं जीव विज्ञान-उत्तर पश्चिम भारतीय अनन्य आर्थिक क्षेत्र में पेसिफिक सेईल फिश इस्टियोफेऱस प्लाटिप्टेरस (शा & नोडर, 1792) (मार्च, 2004)
- एसं वर्गीस, वी एस सोमवंशी एवं सिजो पी वर्गीसयद्यपि भारतीय अनन्य आर्थिक क्षेत्र के महासागरीय सेक्टर में लाँग लाइनिंग द्वारा टूना संसाधनों का समन्वेषी सर्वेक्षण शार्क एवं स्वार्ड फिश टूना मात्स्यिकी के अप्रधान पकड के रुप में पकडी जाती है । इन्डो पेसिफिक सेईल फिश, इस्टियोफोरस प्लाटिप्टेरस एक ऐसी प्रजाती है, जिसमें मुख्य रुप से टूना लाँग लाइन पकड के अप्रधान पकड सम्मिलित है । कुल लाँग लाइन पकड के 15% सहित औसत पकड दर 39.42 कि. ग्रा/1000 हूक्स से यह लक्ष्य प्रकट होता है कि उत्तर-पश्चिम सेक्टर में प्रजातियों की प्रचुरता है । पकड में मौसमी परिवर्तन बताता है कि दूसरी तिमाही (अप्रैल-जून) में उच्चतम पकड़ दर दर्ज हुई है । प्रजातियों का अण्डजनन ऋतु मार्च से सितम्बर तक बढते हुए दीर्घ कालिक है । प्रथम परिपक्वता का आकार 175 सेमी अनुमानित किया है । आहार एवं आहार आचरण यह दर्शाता है कि प्रजातियाँ अचयनित आहार के रुप में से सेफेलोपोड, बोनी फिश एवं क्रस्टेशियन्स खाती है ।
4. मात्स्यिकी चार्ट/एटलसः निम्नलिखित चार्ट/एटलस प्रकाशित किए गएः
- वेड्ज बैक के तलमज्जी ट्रॉल मात्स्यिकी चार्ट (1984) |
- भारतीय अनन्य आर्थिक क्षेत्र तथा समीपस्थ महासागरीय क्षेत्रों में टूना, बिल फिश एवं शार्क का एटलस (1988) |
- अण्डमान एवं निकोबार द्वीपों के चारों ओर भारतीय अनन्य आर्थिक क्षेत्र में टूना, बिल फिश एवं शार्क का एटलस (दिसबर 2000) |
मात्स्यिकी चार्ट 1 (1984): तलमज्जी ट्रॉल मात्स्यिकी चार्टः वेड्ज बैंक - के एम जोसेफ
अक्टूबर1981 से अप्रैल 1983 तक मत्स्य निरीक्षणी, एक 330 जी आर टी मात्स्यिकी सर्वेक्षण पोत द्वारा किए गए ट्रॉल सर्वेक्षण के आधार पर मात्स्यिकी चार्ट तैयार की है अक्षांश 7-8 ए, देशांतर 76-30 78 पू. के बीच स्थित वेड्ज बैंक जिसका क्षेत्र लगभग 12,000 वर्ग कि मी है का सर्वेक्षण ध्वनिक शोध एवं ट्रॉलिंग के संयोजन द्वारा किया गया । औसतन बीस दिनों की अवधि की सत्रह समुद्री यात्राएं की गई, जिसका परिणाम चार्ट में प्रस्तुत है । मछलियों की प्रमुख समूह अर्थात पेर्चस, नेमिप्टेरिड्स, रे, स्क्विड एवं कटल फिश, केरन्गिड, लिजार्ड फिश, कैट फिश तथा अन्य मछलियाँ का वितरण स्वरुप प्रस्तुत किया है । चार्ट में माहवार पकड प्रति घंटा,प्रतिशत संयोजन तथा कुल पकड के संबंध में विविध समूह का प्रतिशत चित्रित किया है ।
मात्स्यिकी चार्ट 2* (1988): भारतीयय अनन्य आर्थिक क्षेत्र एवं समीपस्थ महासागरीय टूना, बिल फिश एवँ शार्क का एटलस - डी सुदर्शन, वी एस सोमवंशी तथा एम ई जॉन
भारतीय मात्स्यिकी सर्वेक्षण के सर्वेक्षण पोत मत्स्य सुगन्धी एवं मत्स्य हरिनी तथा केन्द्रीय मात्स्यिकी नाविकी एवं अभियांत्रिकी प्रशिक्षण संस्थान का प्रशिक्षण पोत एम वी प्रशिक्षणी द्वारा टूना एवं संबंधी संसाधनों की जाँच में संग्रहित आँकडा इस एटलस का आधार बना है । पोतों की विशिष्टता, प्रयुक्त लाँग लाइन गियर विस्तृत रुप से प्रस्तुत की है । अक्षांश 16˚ उ तक भूमध्य रेखा के उत्तर समुद्र में देशांतर 67˚ पू. एवं 96 पू. के बीच अक्टूबर 1983 से मार्च 1988 के दौरान संचालित हूकों की संख्या एवं कुल व्यतीत नमूना प्रयास प्रस्तुत किया है । भारतीय समुद्र से लाँग लाइन पकड़ में मुख्य घटक उनके निदान सूचक स्वभाव के साथ सूची बद्ध किया है । प्रमुख संसाधन अर्थात येलोफिन टूना, बिग आई टूना, स्क्पिजेक, मार्लिन, सेईल फिश, स्वोर्ड फिश, एवं शार्क का स्थानिक वितरण स्वरुप को वार्षिक एवं मासिक चार्ट के रुप में 1 अक्षांश x1 देशांतर की संकल्पना के साथ प्रस्तुत किया है। 5अक्षांश x5 देशांतर के ग्रिडस हेतु तिमाही आधार पर संसाधन संरचना चित्रित की है ।
गोवा में संपन्न एम सी एस कार्यशाला में प्रस्तुत शोध पत्रों की कार्यवाहियाँ (फरवरी 2003)
बृह्त् समुद्री पारिस्थितिक तंत्र मछली स्टॉक के परिरक्षण एवं संपोषित विकास हेतु समन्वेषण एवं खोज़यात्रा पर कोच्चि में संपन्न अंतर्राष्ट्रीय परिसंवाद की कार्यवाहियाँ
टूना बैठक की कार्यवाहियाँ 2003
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6) चार्टरित जलयानों की सूचना श्रृंखलाः
चार्टरित जलयांनो की सूचना श्रृंखला के ब्यौरा के संबंध में जानने हेतु कृपया भारतीय मात्स्यिकी सर्वेक्षण का मुख्यालय मुम्बई या बेस कार्यालयों से संपर्क करें । |
7) विविध क्रूस की प्रारंभिक रिपोर्टः
विविध क्रूस की प्रारंभिक रिपोर्टों के संबंध में ब्यौरा हेतु कृपया भारतीय मात्स्यिकी सर्वेक्षण मुख्यालय, मुम्बई या बेस कार्यालयों से कृपया संपर्क करें । |
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अंडमान एवं निकोबार द्वीपों, लक्षद्वीप द्वीपों में समुद्री जनगणना 2005 पर एक रिपोर्ट-कृपया यहाँ क्लिक करें । |
अंडमान एवं निकोबार द्वीपों, लक्षद्वीप द्वीपों में समुद्री जनगणना 2010 पर एक रिपोर्ट-कृपया यहाँ क्लिक करें । |
11) वर्गीकरण विज्ञान के हैंड बुक -मई 2009
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12) मात्स्यिकी सांख्यिकी पर हैंड बुक
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13) भा.मा.स. की सूचनात्मक चार्टें -2010
1. संक्षिप्त इतिहास, अधिदेश एवं संगठना संरचना- कृपया यहाँ क्लिक करें । |
2. उपग्रह सुदूर संवेदन मात्स्यिकी प्रयोग एवं सुदूर संवेदन प्रौद्योगिकी का अंगीकरण- कृपया यहाँ क्लिक करें । |
3. मल्टीफिलमेंट टूना लॉग लाइनिंग, मॉनोफिलमेंट टूना लॉग लाइनिंग एवं महासागरीय संसाधन- कृपया यहाँ क्लिक करें । |
4. पर्यावरणीय हितैषी मत्स्यन प्रणलियाँ- कृपया यहाँ क्लिक करें । |
5. पेलाजिक ट्रॉलिंग, पर्स सीनिंग एवं पेलाजिक संसाधन - कृपया यहाँ क्लिक करें । |
6. सर्वेक्षण बेड़ा- कृपया यहाँ क्लिक करें । |
7. तलमज्जी ट्रॉलिंग एवं तलमज्जी संसाधन-कृपया यहाँ क्लिक करें । |
8. मानव संसाधन विकास (एच आर डी)- कृपया यहाँ क्लिक करें । |
9. एक झलक में भारतीय मात्स्यिकी - कृपया यहाँ क्लिक करें । |
10. ध्वनिक सर्वेक्षण- कृपया यहाँ क्लिक करें । |
11. समुद्री मात्स्यिकी विकास में प्रमुख योगदान- कृपया यहाँ क्लिक करें । |
12. भविष्यवाद संबंधी दृष्टि- कृपया यहाँ क्लिक करें । |
13. अंतर्राष्ट्रीय जैवविविधता वर्ष 2010 - कृपया यहाँ क्लिक करें । |
17 अप्रैल 2023 अपराह्नन 12:20 को इस पृष्ट का उध्यतन किया गया।